हिन्दी साहित्य में आदिवासी जनजीवन
Abstract
प्रस्तुत शोध पत्र में विभिन्न आदिवासी साहित्यकारों का सन्दर्भ ग्रहण करते हुए आदिवासियों के जीवन की ज्वलन्त समस्याओं को उजागर करने का प्रयास किया गया है। सरल समाज के ताने बाने में रचे बसे इन आदिवासियों की जीवन की धुरी जंगल, पहाड, नदी, झरनें, विभिन्न जंगली वनस्पतियाँ आदि है जिनका अस्तित्व नगरीकरण के कारण संकट में पडता चला जा रहा है। अपनी अस्मिता एवं अस्तित्व का संरक्षण करने के लिए उन्हे कोई मार्ग नहीं सूझ रहा है और वे एक दोयम दर्जे का जीवन जीने के लिए विवश है। निर्मला पुतुल, महाश्वेता देवी, भगवती शरण मिश्र, हरिचरण अहरवार, संजीव, मैत्रेयी पुष्पा आदि साहित्यकारों ने अपने साहित्य में उनकी सरल जीवन शैली एवं उनके जीवन में आने वाली बाधाओं को विविध रूप में प्रकट किया है।
मुख्य शब्दावली- आदिवासी, जंगल, पहाड, अस्तित्व, संघर्ष जीवन, सभ्यता, सरल समाज, जमीन, आदिवासी साहित्य।
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