अशोक मेहता और एशियाई समाजवाद
Abstract
एशिया में लोकतांत्रिक समाजवाद का कार्य पूंजी का सदुपयोग करते हुए गरीबी बेकारी अशिक्षा आदि बुराइयों का खात्मा ही हो सकता है। जबकि समाज के सभी तबकों में जागरूकता उत्पन्न की जाए और उस इस जागरूकता का आधार सांस्कृतिक अतीत में खोजा जाए। जीन ज्यूरेस कहते हैं कि जिस प्रकार अलग-अलग तापमान पर धातुएं पिघलती है, उसी प्रकार नैतिक तापमान होता है जिस पर व्यक्ति नई-नई क्रियाएं प्रकट करता है लेकिन दुर्भाग्य से एशियाई समाजवादी अपनी सांस्कृतिक जड़ों को खोदने में असफल रहे हैं।
यूरोप में समाजवाद की समस्या यह है कि वहां समाज के अधिकांश वर्ग उसका समर्थन नहीं करते हैं, वहीं एशियाई समाजवाद की समस्या बिल्कुल अलग है। यहां के अधिकांश राजनीतिक दल अपने आप को समाजवादी घोषित करते हैं। यही कहा जा सकता है कि किसी विचार को धरातल पर उतारने के लिए समय एवं परिस्थितियों के अनुरूप उसमें परिवर्तन करने अनिवार्य होते हैं। समाजवाद को भी यदि जीवन एवं व्यवहारिक बनाए रखना है तो देश काल की परिस्थितियों के अनुसार इसको निरंतर रूपांतरण करते रहना होगा ।एशियाई समाजवाद की त्रासदी दोहरी है एक और तो अधिकांश मामलों में एशिया की परिस्थितियों के अनुसार समाजवादी विचारों को ढालने का प्रयास नहीं किया गया है, दूसरी ओर जहां कहीं भी प्रयास हुआ है, वह निहित स्वार्थी तत्वों एवं समझौता परस्त तत्वों के द्वारा किया गया है, परिणामस्वरूप छद्म समाजवादी के समाजवादियों के हाथों में पड़कर एशियाई लोकतांत्रिक समाजवाद विकृत एवं कांतिहीन होता जा होता गया है।
मुख्य शब्द- अशोक मेहता, एशिया में लोकतांत्रिक समाजवाद, कार्य पूंजी का सदुपयोग, गरीबी बेकारी अशिक्षा।
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