विनम्र गर्वीले चेहरे और नगण्यता के गुणगान का कवि

Authors

  • ऋचा वर्मा

Abstract

वीरेन डंगवाल हिन्दी कविता के वैचारिक विमर्श को समझने और समाज में जनपक्षधरता की आवाज़ को बुलन्दी पर ले जाने वाले कवि हैं। उनके समय की कविता को हम समकालीन हिन्दी कविता या आठवें दशक की हिन्दी कविता कहते हैं। वीरेन की कविताएँ अपने दशक में आये विभिन्न सामाजिक एवं साहित्यिक बदलावों के समानान्तर एक नई काव्य-दृष्टि का उन्मुक्त उदाहरण हैं। वीरेन की निगाह सामाजिकता और मनुष्यता को गुनने बनने में बहुत स्पष्ट तौर पर देखे जा सकने वाले प्रत्यक्ष अवयवों से लेकर अप्रत्यक्ष अवयवों तक को बहुत साफ पहचानती है। वीरेन की कविता में वर्गशत्रु या अंधेरे की बर्बर ताकतों के समक्ष नगण्य को भी स्थापित करने का जज़्बा है।
बीज-शब्दः- वीरेन डंगवाल, हिन्दी कविता, वैचारिक विमर्श और नई काव्य-दृष्टि।

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Published

31-01-2023

How to Cite

1.
ऋचा वर्मा. विनम्र गर्वीले चेहरे और नगण्यता के गुणगान का कवि. IJARMS [Internet]. 2023 Jan. 31 [cited 2025 Mar. 12];6(1):97-103. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/456

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