एकात्म अर्थनीति : एक तीसरा विकल्प
Abstract
वर्तमान समय में आर्थिक समस्याएं अत्यंत जटिल हो चुकी है। इन समस्याओं के समाधान के लिए पश्चिमी विद्वानों ने अनेकों विचार रखे, परंतु ये सभी दृष्टिकोण एकांगी ही रहे। उत्पादन पर अधिक बल देने के कारण पश्चिम में पूँजीवाद का विकास हुआ। पूँजीवाद में यंत्रों के स्वामी ही उत्पादन के स्वामी बन गए। फलस्वरूप लाभ में श्रमिकों का हिंसा कम होता चला गया जिस कारण उनमें प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई और एक नई आर्थिक प्रणाली समाजवाद या साम्यवाद का विकास हुआ। परन्तु पुनः इस प्रणाली में भी वही बुराईयाँ जन्म ले ली जो की पूँजीवादी प्रणाली में विद्यमान थी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने इन दोनों प्रणालियाँ से अलग अपनी एकात्म मानववाद पर आधारित एकात्म अर्थनीति का प्रतिपादन किया जिसमे व्यक्ति के लोकतांत्रिक अधिकारों व उसके स्वस्थ विकास की सम्भावनाएं प्रबल है।
मुख्य शब्दः- एकात्म मानववाद, एकात्म अर्थनीति, अर्थायाम, पूँजीवाद, समाजवाद, लोकतांत्रिक अधिकार, व्यक्ति स्वातन्त्रता, प्रतियोगिता, आर्थिक घटक, अनार्थिक घटक।
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