कबीर का मानवीय चिंतन
Abstract
हिंदी सन्त काव्य परम्परा अपनी रचनाधर्मिता, सामाजिक - सांस्कृतिक सरोकार, मूल्य चेतना और भावनात्मक सौंदर्य में अपूर्व है। इस काव्य की अपनी प्रभावोत्पादकता है क्योंकि यह उन सन्तों की रचना है जिन्होंने समकालीन सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की विसंगतियों, अलगावों, असमानताओं, विरोधाभासों एवं द्वंदों को भोगा था। इस भोगे हुए यथार्थ का सर्वाधिक तीव्र स्वर कबीर का है।वे एक सामाजिक और मानवतावादी रचनाकार हैं। उन्होंने हिंदू - मुस्लिम संस्कृति की विसंगतियों पर समान रूप से प्रहार किया और सबसे ऊपर प्रेम पर आधरित मानव धर्म की स्थापना पर बल दिया और मानवता को शाश्वत धर्म के रूप में ग्रहण किया।
बीज शब्द- मानवता, प्रेम, सदभाव, सौहार्द, समदृष्टि, सदाचार, समन्वय।
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