कबीर का समाज चिंतन
Abstract
हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकालीन साहित्य तथा कवियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भक्तिकाल की समय सीमा संवत् 1375 से 1700 तक स्वीकार की है। इस काल खण्ड को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा गया है- निर्गुण धारा एवं सगुण धारा। निर्गुण धारा ज्ञानाश्री तथा प्रेमाश्री शाखाओं में बँटी हुई है तथा सगुण धारा भी कृष्णकाव्य तथा रामकाव्य दो शाखाओं में विभक्त है। कबीरदास निर्गुण धारा के अन्तर्गत ज्ञानाश्री शाखा के प्रतिनिधि संत कवि के रूप में विख्यात हैं। इस शोध आलेख में कबीरदास के सामाजिक दृष्टिकोण या उनकी सामाजिक चेतना का वर्णन, उदाहरणों सहित किया गया है जो आज के इस बौद्धिकतावादी समाज एवं हिंसा के पथ पर चलने वाले भारतीय समाज को नई दिशा प्रधान करने में सहायक सिद्ध होगा।
बीज शब्द, मध्यकाल, समाज अन्धविश्वास, जाति-पाति, हिंसा।
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