कबीर का भाषिक चिंतन

Authors

  • सुगंधि गुप्ता

Abstract

भाषा पर कबीर का पूर्ण रूप से अधिकार था। अपने अनुरूप भाषा को तोड़ने-मरोड़ने की क्षमता उनके भीतर थी। आज के आधुनिक युग में भी कबीर की भाषा सार्थक सिद्ध होती है। उनकी भाषा में अनेक भाषाओं के तत्वों का मिश्रण है। लोक जन की भाषा को आधार बनाकर ही उन्होनें समाज में फैली कुरीतियों को खत्म करने का कार्य किया। एक सच्चे क्रांतिकारी के रूप में समाज को जागृत करने और सुधारने में उन्हांेने महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई है। पढ़े लिखे न होने के बावजूद जितना ज्ञान उन्हें था उसे नकारा नहीं जा सकता है। प्रत्येक मनुष्य को जगाने का और सुधारने का ठेका लेकर कबीर समाज को बनावटी पन से दूर रखने के पक्ष मेें थे। जितनी सरलता, सहजता, प्रखरता कबीर की भाषा में थी वह सर्वोपरि है उसे बदला नहीें जा सकता।
बीजशब्द- भाषा, सरलता, सहजता, वाणी, भावों, लोकभाषा, समाज सेवक, समाज सुधारक, सहदयता।

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Published

01-02-2024

How to Cite

1.
सुगंधि गुप्ता. कबीर का भाषिक चिंतन. IJARMS [Internet]. 2024 Feb. 1 [cited 2024 Dec. 21];7:9-12. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/555