कबीर का कला चिन्तन
Abstract
कबीर कलाकार थे इसलिए उन्होने कहा था, ‘‘सबहिं मूरत बिच अमूरत, मूरत की बलिहारी।‘‘ जो श्रेष्ठ कलाकार है उनमें ये देख रहा हूॅ, अच्छी-बुरी सब मूर्तियों में अमूर्ति ही विद्यमान होता है। ‘ऐसा लो नहिं तैसा मैं केहि विधि कथौं गम्भीरा लो।‘ सुन्दर जो असुन्दर में भी है, यह गम्भीर बात समझाकर बोलना कठिन काम, इसलिए कबीर एक ही बात में सभी तर्कों को समाप्त करते हैं। ‘बिछुरी नहिं मिलिहो।‘ अलग होकर उसको खोज पाना सम्भव नहीं है। लेकिन ये जो सुन्दर की अखण्ड धारणा कबीर को मिली, उसके मूल में किस भाव की साधना थी, यह जानने के लिए मन सहज ही उत्सुक हो जाता है।
बीज शब्द- कबीर, कला चिन्तन, सरलता, सहजता, वाणी
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Published
01-02-2024
How to Cite
1.
श्वेता शर्मा. कबीर का कला चिन्तन. IJARMS [Internet]. 2024 Feb. 1 [cited 2025 Feb. 5];7:18-21. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/560
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