कबीर के सामाजिक चिन्तन की शिक्षा में प्रासंगिकता
Abstract
कबीर की विचारधारा समाज के लिए एक दर्पण है, कबीर ने जातिवाद, ऊंच-नीच, धार्मिक कट्टरता और अन्धविश्वास के विरूद्ध शंखनाद किया। उन्होने हिन्दू, मुस्लिम के नाम पर चल रहे भेदभाव तथा उनके बीच दूरी को कम करने में सेतु का कार्य किया। कबीर एक महान क्रान्तिकारी संत थे। उन्होने निडर भाव से समाज में व्याप्त कुरीतियों का विरोध किया। उन्होने धर्म के नाम पर हिंसा तथा पशुबलि का विरोध किया। कबीर ने पुस्तकीय ज्ञान के खण्डन के साथ सदाचार पर बल दिया और परिश्रम को सफलता की कुंजी बताया। कबीर बहुआयामी प्रतिभासम्पन समाज सुधारक संत थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति के प्रगतिशील शास्वत मूल्यों का तो पुरजोर समर्थन किया साथ ही प्रगति में बाधक रूढियों एंव अन्धविश्वासों का खण्डन करते हुए मानवीयता के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। अतः उनका समाजिक चिन्तन शिक्षा में आज भी प्रासंगिक हैं।
बीज-शब्द- कबीर, सामाजिक चिंतन, विरोध, शिक्षा, प्रासंगिकता
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