कबीर के काव्य पर सिद्धनाथ सम्प्रदाय की वैचारिकता का प्रभाव
Abstract
कबीर के काव्य में रहस्यवाद के तत्वों के विवेचन में योग साधना, उलटवासियों, ब्रह्मचिंतन, सहस्रार आदि शब्दों की योजना और अभिव्यंजना यह सिद्ध करती है कि उनके काव्य चिंतन पर पूर्ववर्ती सिद्ध-नाथ सम्प्रदाय के विचारों का स्पष्ट प्रभाव है। प्रस्तुत शोध पत्र में नाथ और सिद्ध सम्प्रदाय की मान्यताओं का कबीर की वाणी में परिलक्षित प्रभाव का विवेचन किया गया है।
रामकुमार वर्मा के अनुसार ‘सिद्ध साहित्य, नाथ पंथ और संत मत की ही विचारधारा की तीन परिस्थितियां हैं। इन दोनों का अत्यधिक प्रभाव कबीर पर पड़ा’ कबीर ने जिस योग साधना, षट्चक्र, इड़ा-पिंगला-सुषुम्ना का वर्णन कर साधना का रूप बताया है, वह सिद्धों और नाथों द्वारा अनुमोदित है। कबीर तक आते आते कुछ पारिभाषिक शब्द अलग रूपों में ग्रहण किये गये किन्तु कबीर ने योग साधना का वही रूप ग्रहण किया जो सिद्धों और नाथों ने दिया। मुख्य रूप से हठयोग साधना, यौगिक क्र्रियाआंें से शारीरिक और मानसिक नियंत्रण, सात चक्र, नाड़ी संधान आदि से ब्रह्म रंध्र्र की प्राप्ति, ईश्वर की अपने ही शरीर में स्थिति का विचार जैसे रहस्यवादी विचारों की व्याप्ति कबीर पर नाथ पंथ के व्यापक प्रभाव को प्रमाणित करता है। इसके अतिरिक्त कबीर के सामाजिक विचारों पर भी सिद्ध नाथ योगियों का प्रभाव है। जैसे- बाह्याडंबरों का विरोध, जाति पाति का ख्ंाडन, बाह्याचारों का विरोध आदि-
सिद्धों का मानना है-
‘आवण गमण गां नेन विषैन्यों,
तो वि निगज्ज भणइं हउ पंडिओ।
कबीर भी कहते हैं-
‘जो तू बामण बामणी जाया, आन बाठ हु, क्यों नहीं आया।’
नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक गोरखनाथ की वाणी और कबीर की वाणी में भाषान्तर से अनेक वैचारिक समानताएं दिखाई देती हैं। जैसे गोरखनाथ ने पुस्तकीय ज्ञान का खंडन करते हुए पुस्तकीय ज्ञान रखने वाले को भारवाही गर्दभ कहा है (गोरख सिद्धांत संग्रह) ठीक उसी प्रकार कबीर ने भी कहा -‘पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।’
अनेक विद्वानों ने कबीर पर बौद्ध मत के वज्रयान और सहजयान धारा के सिद्धों और सिद्धों की सुसंस्कृत धारा मानी जाने वाली नाथ परंपरा का प्रभाव माना है । इसी क्रम में उन्हें नाथ सम्प्रदाय की विचारधारा को विकसित और परिष्कृत करने वाले संत कवि के रूप में भी देखा जाता है।
मुख्य बिंदु - सिद्ध संप्रदाय, नाथ संप्रदाय गुरु की महत्ता, बाह्य आडंबरों का विरोध, जाति पाति का खंडन, हठयोग साधना, रहस्यवाद, सबद।
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