कबीर के चिन्तन की वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्रासांगिकता
Abstract
‘‘कबीरा खड़ा बाजार में, माँगे सबकी खैर
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।। ‘‘
कबीर सिर्फ कोई कवि या नाम नहीं है अपितु अपने में पूरा युग थे। जिनके काव्य और चिन्तन ने व्यक्ति, समाज, राजनीति सभी के हृदय को स्पर्श किया था। संतों का अनुभव उनके ऑखों देखे समाज अथवा इतिहास में ले गुजरते हुये संवेदनशील मनुष्य का अनुभव है। वे अपेक्षित, शोषित, बहिष्कृत, अशिक्षित, शास्त्र ज्ञान से रहित किन्तु संस्कारवान, रचनाकार थे। जो श्रमिक वर्ग से जुड़े थे। कबीर इतिहास की विषम परिस्थितियों में पिसे थे। इतिहास की उन विषम परिस्थितियों में ही इनके व्यक्तित्व को विसंगतियों से लड़ने का साहस प्रदान किया था। उनके साहित्य और चिन्तन की दूरदर्शिता हमें आपकी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में देखने मिल रही है। कबीर के चिन्तन और साहित्य के साक्षात दर्शन हमें वर्तमान शिक्षा नीति में होते है। चाहे वह बस्ते का वजन कम कर पुस्तकीय ज्ञान का विरोध हो मूल्य शिक्षा या बहुभाषा की बात हो या वह आत्म निर्भर भारत का स्वप्न हो। उनका चिन्तन पूर्णतः वर्तमान शिक्षा नीति के साथ प्रसंगानुकूल है।
मूल शब्द - कबीर , राष्ट्रीय शिक्षा नीति, मूल्य शिक्षा रचनात्मकता।
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