कबीरदास धर्मनिरपेक्षता और कबीर
Abstract
कबीर स्वतंत्र प्रकृति के मनुष्य थे। मुसलमानों के रोजा, नमाज़, हज, ताजिएदारी और हिन्दुओं के तीर्थ, व्रत मंदिर आदि सबका उन्होंने विरोध किया। कर्मकांड की उन्होंने भर पेट निंदा की। बाहरी पाखंड के लिए उन्होंने हिन्दू मुसलमान दोनों को खूब फटकारें सुनाई हैं। धर्म को वे आडंबर से परे एकमात्र सत्य मानते थे। कबीर समाज में मनुष्यत्व के विकास के लिए हृदय के धर्म अर्थात मानवीय भावों को लोकधर्म बनाने पर जोर देते हैं। इसलिए वे एक और ईर्ष्या, द्वेष, कपट, अहंकार आदि की आलोचना करते हैं तो दूसरी ओर प्रेम, करूणा, दया, उदारता आदि का विकास चाहते हैं।
बीज शब्द- सांप्रदायिकता, मनुष्यत्व, नाथपंथ, शाक्त मत।
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Published
01-02-2024
How to Cite
1.
डॉ.अर्चना द्विवेदी. कबीरदास धर्मनिरपेक्षता और कबीर. IJARMS [Internet]. 2024 Feb. 1 [cited 2024 Dec. 21];7:115-7. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/583
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