संत शिरोमणि कबीर के समाज दर्शन की वर्तमान समय में उपादेयता
Abstract
भारत ऋषि-मुनियों व संतों की पावन धरा रही है। जिस पुण्यधरा पर समय-समय पर अनेक दिव्य विभूतियां अवतरित होती रही हैं
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वस्तुतः किसी भी महापुरूष की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती उनका लोकहितकारी चिंतन त्रैकालिक, सार्वभौमिक एवं सार्वदेशिक होता है और युग-युगाान्तर तक समाज का पथ प्रदर्शित करता है। संत शिरोमणि कबीरदास भी हमारे समाज व राष्ट्र के ऐसे ही एक प्रकाश स्तंभ है, जिन्होंने न केवल धर्मक्रांति की अपितु राष्ट्रक्रांति के भी वे प्रेरक बने। उन्होंने भयाक्रांत, आडम्बरों में जकड़ी और धर्म से विमुख जनता को अपनी आध्यात्मिक शक्ति और सांस्कृतिक एकता से संबल प्रदान किया। संत कबीरदास उन महान संतों व महापुरूषों में अग्रणी हैं जिन्होंने देश में प्रचलित अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, विभिन्न प्रकार के आडम्बरों व सभी अमानवीय आचरणों का विरोध किया। वे भारत के महान चिन्तक, समाज सुधारक, क्रांतिकारी धर्मगुरू, देशभक्त व प्रतिभाशाली महाकवि के रूप में विख्यात हैं। संत कबीर के हृदय में आदर्शवाद की उच्चभावना, यथार्थवादी मार्ग अपनाने की सहज प्रवृत्ति, मातृभूमि को नई दिशा देने का अदम्य उत्साह, धार्मिक-सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक दृष्टि से युगानुकूल चिन्तन करने की तीव्र इच्छा तथा भारतीय जनता में गौरवमय अतीत के प्रति निष्ठा जगाने की भावना थी। उन्होंने किसी के विरोध तथा निन्दा की परवाह किये बिना समाज का कायाकल्प करना अपना ध्येय बना लिया था।
बीज शब्द- वसुधैव कुटम्बकम्, अहिंसा, सद्गुण, अंतःशुद्धि, जातिविहीन, समाज, पाखण्ड।
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