कबीर की आध्यात्मिक चेतनाः एक विश्लेषण
Abstract
कबीर को अपने समय की समस्त ज्ञात अज्ञात साधना पद्धतियों का न केवल ज्ञान था अपितु उन्होंने अपने आध्यात्मिक जीवन के विकास में इन सभी साधना पद्धतियों का समुचित उपयोग भी किया। उदाहरण के लिए सिद्धों की नैरात्म्य साधना, नाथों का हठयोग ,सूफियों का रहस्यवाद तथा शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत तथा उपनिषदों की विचारधारा, और वैष्णव प्रपत्तिवाद का सिद्धांत। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कबीर ने उपर्युक्त साधना पद्धतियों में व्याप्त कथित अंतर विरोधों को को दूर कर ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में इन्हें सहगामी विचार पद्धतियों के रूप में ग्रहण किया है।
कबीर आत्मा और परमात्मा में अद्वैत भाव की स्थापना करते हैं और परमात्मा की प्राप्ति के लिए चित्त की शुद्धि पर बल देते हैं। कबीर की साधना पद्धति पर सर्वाधिक प्रभाव सिद्ध और नाथों का है। यहां से कबीर ने सहज साधना नैरात्म्य भावना, आत्म शुद्धि, हठयोग, कुंडलिनी जागरण तथा साधनात्मक रहस्यवाद इत्यादि साधना पद्धतियों को कबीर ने सिद्धों और नाथों से सीधे ग्रहण किया है। साधनात्मक रहस्यवाद के साथ-साथ अपनी साधना पद्धति में कबीर ने सूफियों के भावनात्मक रहस्यवाद का भी उपयोग किया है। ज्ञानमार्ग और योगमार्ग के साथ-साथ कबीर भक्ति मार्ग के भी धीर पथिक हैं। समाज और धर्म की सत्ता के साथ-साथ निरंकुश राज ,सत्ता के सामने डटकर खड़े रहने की प्रेरणा व शक्ति भी कबीर को राम से ही प्राप्त होती है। कबीर के दर्शन के आध्यात्मिक पक्ष के साथ-साथ इसका एक सामाजिक पक्ष भी है। इस सामाजिक पक्ष को हम कबीर की आध्यात्मिक विचारधारा का ही उप उत्पाद कह सकते हैं। कबीर सिर्फ मानव ही नहीं, अपितु प्राणी मात्र की क्षमता और उनमें पारस्परिक समरसता की बात करते हैं।
बीज शब्द- अद्वैतवाद, नैरात्म्यवाद, कठमुल्लापन, पुरोहितवाद, कुंडलिनी, हठयोग, साधनात्मक रहस्यवाद, भावनात्मक रहस्यवाद।
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