वर्तमान समय में कबीरदास की प्रासंगिकता

Authors

  • डॉ0 विनय कुमार पटेल

Abstract

वर्तमान विश्व बहुत तेज गति से एक वैश्विक गाँव में परिवर्तित हो रहा है। ऐसे समय में जब विश्व में भौतिकतावाद बढ़ने के साथ-साथ सामाजिक सदभाव और शांति में कमी आयी है एवं राष्ट्रों के बीच तनाव बढ़ा है, कबीरदास के सत्य सन्देश के प्रचार-प्रसार से ही विघटित मानव समाज को फिर से एक सूत्र में जोड़ा जा सकता है। आज की सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों को देखकर भले ही हमें यह लगता है कि, हम उत्तर कबीर युग में जी रहे हैं, लेकिन अगर हम कबीरदास के काव्य को सही से पढ़े तो यह स्पस्ट होता है कि, उसमें आज के समय और समाज के अनेक जटिल सामाजिक, सांस्कृतिक प्रश्नों के पहचान के संकेत हैं एवं उनके उत्तर की सम्भावनाएँ भी। समय बतला देगा कि, कबीरदास की कविता न तो नीरस ज्ञान है और न केवल साधुओं के तानपुरे की चीज। आलोचक कबीरदास की कविता को सामने रखकर उनके काव्य रत्नाकर से, थोड़े से रत्न पाने का प्रयत्न करे, चाहे वे जगमगाते हुए जीवन के सिद्धांत रत्न हो या अध्यात्मिक जीवन के झिलमिलाते हुए रत्न कण हो। अपने त्याग, तपस्या, समता, सदाचार और सद्भावना का वह संदेश भारतीय जनता के सम्मुख पेश किया, जिसमें जनहित की भावना निहित थी। कबीरदास का प्रत्येक संदेश किसी एक व्यक्ति, जाति, समाज, देश या वर्ग विशेष के लिए नहीं है। वह तो मानव मात्र के लिए है। कबीरदास का मानना था कि, असत्य का प्रकोप जितना बढ़ता है सत्य उतना ही प्रासंगिक हो जाता है। कबीरदास के पवित्र सत्य सन्देश की प्रासंगिकता हमेशा से थी, आज भी है, और आगे भी रहेगा, क्योंकि सत्य प्रत्येक युग में एक ही रहता है।
बीज शब्दः- कबीरदास, वर्तमान विश्व, प्रासंगिक, काव्य, सामाजिक, असमानता, जातिवाद।

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Published

01-02-2024

How to Cite

1.
डॉ0 विनय कुमार पटेल. वर्तमान समय में कबीरदास की प्रासंगिकता . IJARMS [Internet]. 2024 Feb. 1 [cited 2024 Dec. 3];7:143-9. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/595