मानवतावादी संत कबीरदास

Authors

  • डॉ0 अम्बिली वी एस

Abstract

उत्तर भारत में भक्ति को साधारण जनता तक पहुँचाने का श्रेय सबसे पहले रामानन्द को तथा उनके बाद कबीरदास को दिया जाता है। रामानन्द ने भक्ति को एकान्तिक साधना मानते हुए भी मानव मात्र के लिए सुलभ बनाया तो कबीर ने उसे लोक - मानस में सहजता के साथ पेठने का मार्ग प्रदर्शन किया। उन्होंने भक्ति को शास्त्र के बंधनों से मुक्त कर लिया। कबीर के बारे में कहा जाता है कि वह भक्त होने के साथ समाज-सुधारक भी थे। हिन्दु दृ मुस्लिम एकता के समर्थक थे तथा किसी मतवाद में बँधे न होने के कारण स्वतन्त्र उपदेष्टा थे, किन्तु कबीर के जीवन का प्रमुख लक्ष्य मानव मात्र में समता एवं एकता स्थापित करना ही था। भक्ति की व्यष्टि - साधना के साथ सामाजिक हित में उपयोग बनाना ही सच्ची मानवतावादी दृष्टि समझी जाती है। कबीर की भक्ति दृ पद्धति में यह दृष्टिकोण सर्वाधिक गहराई तक परिलक्षित होता है। कबीर का काम धर्मोपदेश या पुजारी का व्यवसाय नहीं था। जीविका के लिए कबीर ने स्वतंत्र होकर, स्वाभिमान की रक्षा करते हुए, जुलाई का व्यवसाय अपनाया था, अर्थात अपने व्यवसाय की शब्दावली, प्रतीक एवं अप्रस्तुत योजना का अपने काव्य में प्रयोग किया था। वर्तमान समय में जब सब कहीं मानवाधिकार का ध्वंस होता जा रहा है तब कबीर के मानवतावादी विचार बहुत अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं स मानव धर्म के सन्दर्भ में कबीरदास को हम बिना किसी संदेह के अपने संबल के रूप में हमेशा साथ लेकर चल सकते हैं।
बीज शब्द- मानवतावाद, भक्तिमार्ग, भक्तिसूत्र, वर्गवाद, वर्णाश्रम, धर्माडम्बर, प्रपंच।

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Published

01-02-2024

How to Cite

1.
डॉ0 अम्बिली वी एस. मानवतावादी संत कबीरदास. IJARMS [Internet]. 2024 Feb. 1 [cited 2024 Nov. 21];7:163-7. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/599