21वीं सदी में सत्याग्रह आन्दोलन की प्रासांगिकता

Authors

  • 1डॉ० अनुपमा श्रीवास्तव 2डॉ० कौशलेंद्र कुमार सिंह

Abstract

प्रस्तुत शोध-पत्र 21वीं सदी में सत्याग्रह की प्रासांगिकता को बताने के लिये लिखा गया है। सत्याग्रह की उत्पत्ति कैसे हुई ,इसनें एक नही बल्कि दुनिया के दो देशों को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया। दुनिया जब शक्ति द्वारा शासित की जा रही थी उस समय शांति और सत्य के मार्ग पर चलकर किस तरह सत्ता का परिवर्तन किया गया। किस तरह महात्मा गाँधी जी ने इसका प्रयोग दक्षिण अफ्रीका और भारत में किया और जो सफल भी रहा। गाँधी जी द्वारा भारत में चलाये गये अनेकों सफल व असफल सत्याग्रहों का वर्णन प्रस्तुत शोध में किया गया है। सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर सत्याग्रह किया जा सकता और जहाँ हिंसा आरम्भ हुई वही सत्याग्रह का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। गाँधी जी की मृत्यु के बाद गाँधीवाद विश्व में प्रसिद्ध विचारधारा बनी और गाँधी जी के सिद्धांतों में सत्याग्रह सदैव महत्वपूर्ण रहा। लेकिन आज 21 वीं सदी में जहाँ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कब दंगों का रूप धारण कर ले कुछ पता नही रहता।
शांतिपूर्ण दबाव की जगह लोग बलपूर्वक अपनी बात मनावाने का प्रयास करते है जैसे जाट आरक्षण की माँग करते हुये रेल की पटरियों को उखाड़ने लगे थे और सार्वजनिक सम्पत्ति को हानि पहुँचाने लगे थे ऐसे कई अनेकों उदाहरण है। लेकिन इस समय भी सत्याग्रह के अनेकों सफल प्रयोग देखे गये । अन्ना हजारे जो आज के गाँधी कहे जाते है इन्होने अनेकों सत्याग्रह आंदोलन किये और सभी शांतिपूर्ण व लगभग सफल भी रहे। हाल ही में छत्ब् - ब्।। के विरोध में तथा 3 कृषि विधेयकों के विरोध में सत्याग्रह आंदोलन हुआ किन्तु उनका आरम्भ शांतिपूर्ण हुआ था लेकिन अंत हिंसा से हुआ। जैसे ही हिंसा आरम्भ हुई सत्याग्रह अपने प्राण त्याग देता है। सत्याग्रह के माध्यम से जन समर्थन प्राप्त किया जाता है किंतु जब वो सत्याग्रह हिंसा का रूप धारण कर लेती है तो उसके प्रति किसी को भी सहानुभूति नही रहती है। अनेकों उदाहरणों का वर्णन प्रस्तुत शोध-पत्र में किया गया है और किसी सत्याग्रह के सफल व असफल होने के पीछे के कारकों का भी वर्णन किया गया है। जब हम सही होते है तो हमारे अंदर एक आत्मविश्वास आता है और यह शक्ति के रूप मे लोगो को प्रभावित करती है और आपके पक्ष में आकर्षित करती है और फिर एक विशाल जनसमर्थन आपको प्राप्त हो जाता है। जनता की सहानुभूति और सहयोग से सत्याग्रह की शक्ति में वृद्धि होती है और फिर उस शक्ति से टकराने का सामार्थ्य किसी भी शासन सत्ता में नही रहता है। बलपूर्वक ,अत्याचार करके कभी भी लम्बे समय तक शासन नही किया जा सकता है, और सत्याग्रह का उद्देश्य ही है कि आप सत्य को स्वीकार करे । सत्य कभी पराजित नही होता और इसीलिये 21वीं में भी सत्याग्रह उतना ही प्रभावशाली है जितना 20वी सदी में था। उपर्युक्त विषयों का अध्ययन करके यह शोध पत्र लिखा गया और यह विषय आज के समय में विचारणीय भी है।

KeyWords- स्वतंत्रता, सत्याग्रह आंदोलन, 21वीं सदी के सत्याग्रह आंदोलन, अन्ना हजारे के सत्याग्रह आंदोलन, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन, कृषि कानूनों के विरुद्ध किसानों का सत्याग्रह।

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Published

04-09-2021

How to Cite

1.
1डॉ० अनुपमा श्रीवास्तव 2डॉ० कौशलेंद्र कुमार सिंह. 21वीं सदी में सत्याग्रह आन्दोलन की प्रासांगिकता. IJARMS [Internet]. 2021 Sep. 4 [cited 2025 Jul. 4];4(2):1-14. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/66

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