वर्तमान शिक्षा व्यवस्था संबंधी सामाजिक अवधारणा एवं मूल्यसंकट नई शिक्षा नीति के विशेष सन्दर्भ में एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

Authors

  • 1डॉ० अरविन्द कुमार शुक्ल 2डॉ० अशोक कुमार पाठक

Abstract

शिक्षा सर्वांगीर्ण विकास हेतु वह प्राण वायु है जो व्यक्ति को अनुशासित रहना सिखाती है, साथ ही उसे आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश कराते हुए, सत्य की खोज में लगे मानव आत्मा को प्रशिक्षित करती है, परिणांमतः व्यक्ति स्वयं के, समाज के, राष्ट्र के एवं मानवता के परिमार्जन में सकारात्मक योगदान दे पाता है। परन्तु आज यह विचारणीय विषय है कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की समाज में स्थिति क्या है। इस शिक्षा का भारतीय समाज में कितना योगदान हो रहा है। वर्तमान शिक्षा प्राप्त लोगों में मूल्यो की स्तर क्या है तथा उसके लिए वर्तमान शिक्षा व्यवस्था कितना उत्तरदायी है तथा प्रशासन को शिक्षा निति बनाते समय किन विन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए. चूंकि शिक्षा एक प्रक्रिया है अतः इसमें कई पक्ष अपनी भूमिका अदा करते हैं, जैसे शिक्षार्थी, शिक्षक, शिक्षण विधि, शिक्षण तकनीक, शिक्षण सामाग्री/पाठ्यक्रम, समाज, परिवार एवं वातावरण आदि।
अतः प्रस्तुत अध्ययन वर्तमान शिक्षाव्यवस्था तथा उसकी उपयोगिता पर एक विश्लेषण है, जिसमें अध्ययनकर्ता ने शिक्षकों, शिक्षार्थियों, अभिभावकों, एवं समाज के लोगों के विचारो को समाहित करते हुए समझने का प्रयास किया है। अध्ययन से यह स्पष्ट है कि आज के अभिभावक एवं समाज के अन्य लोग वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था के विभिन्न पक्षों से खुश नहीं है शिक्षा व्यवस्था में गिरते शिक्षक एवं छात्र स्तर, गैर रोजगार प्रदायी पाठ्यक्रम, देश में असमान शिक्षण प्रणाली एवं पाठ्यक्रम, अप्रायोगिक शिक्षण तकनीक, शिक्षक भर्ती में भ्रष्टाचार, अयोग्य लोगों की भर्ती, योजनाओं की असफलता एवं अव्यवस्था से आज शिक्षा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है. नवनियुक्त अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार, मानव मूल्यों में गिरावट एवं गिरते शिक्षक छात्र सम्बन्ध से, गिरते शैक्षिक मूल्यों का अंदाजा लगाया जा सकता है। जरूरी है कि महात्मा गाँधी जी के विचारों को अपनाते हुए माध्यमिक स्टार तक की शिक्षा को अधिक पुष्ट, समग्र एवं रोजगार प्रदायी बनाया जाये.शिक्षा में शिक्षण विधि तकनिकी एवं शिक्षक प्रशिक्षण की रूपरेखा निर्धारित की जाये साथ ही शिक्षा प्रशासन को नयी दिशा दी जाये। आवश्यक है कि इन पक्षों पर सरकार विचार करे एवं परिमार्जन करे ताकि शिक्षा समाज निर्माण में अपनी भूमिका को प्रभावी रूप से अदा कर सके. अब समय है की शिक्षा के अधिकार के बजाय सरकार गुणवत्तापूर्ण तकनीक युक्त निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के बारे में सोचे। अब जरूरी है की शिक्षक भी ऑनलाइन शिक्षण के लिए तकनीकि रूप से संमृद्ध हो। नयी शिक्षानीति निश्चित तौर पर सरकार के सराहनीय कदम है जो शिक्षा की वर्तमान कमियों को दूर करने में प्रभावी भूमिका अदा करेंगी।

Kewwords- वर्तमान शिक्षा व्यवस्था संबंधी सामाजिक अवधारणा, मूल्यसंकट, नई शिक्षा नीति के विशेष सन्दर्भ तथा उसकी उपयोगिता।

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Published

04-09-2021

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1.
1डॉ० अरविन्द कुमार शुक्ल 2डॉ० अशोक कुमार पाठक. वर्तमान शिक्षा व्यवस्था संबंधी सामाजिक अवधारणा एवं मूल्यसंकट नई शिक्षा नीति के विशेष सन्दर्भ में एक विश्लेषणात्मक अध्ययन. IJARMS [Internet]. 2021 Sep. 4 [cited 2025 Mar. 12];4(2):28-49. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/68

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