कामायनी के स्त्री पात्रों का विश्लेषणात्मक अध्ययन
Abstract
जयशंकर प्रसाद ने अपने साहित्य का मूल आधार भारतीय सांस्कृतिक पुनर्निर्माण को बनाया है। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण के दौरान वे एक महत्वपूर्ण स्थापना से बार-बार टकराते हैं, और वह है स्त्री-पुरुष का आपसी संबंध। प्रसाद के साहित्य में स्त्रियाँ केवल श्रद्धा मात्र नहीं हैं, बल्कि वे संघर्ष, औदात्य, गरिमा और दुर्बलता का भी प्रतीक बनकर आती हैं। कामायनी में तो प्रसाद जी ने श्रद्धा और इड़ा को जितने द्वंद्वात्मक प्रक्रिया के रूप में देखा है उतना ही एक दूसरे के पूरक के रूप में भी। संघर्ष और समाहार दोनों स्तर एक दूसरे में बुने हुए हैं। जयशंकर प्रसाद ने अपने साहित्य में स्त्री को केवल प्रेम और सौंदर्य की प्रतीक नहीं बनाया, बल्कि उसे आध्यात्मिक चेतना, सामाजिक परिवर्तन और संघर्षशीलता का संवाहक भी प्रस्तुत किया। उनकी कविताओं में नारी के रूप, स्वभाव और उसकी भूमिका का एक ऐसा सजीव चित्रण मिलता है, जो मानवता के विकास में उसकी अद्वितीय भूमिका को रेखांकित करता है। प्रस्तुत लेख में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कामायनी में श्रद्धा और इड़ा अपने स्त्री रूप में किस तरह मानवता के सामाजिक और सांस्कृतिक विकास यात्रा में सहायक सिद्ध होती है और साथ ही यह भी कि दोनों स्त्री पात्रों को नायिका - खलनायिका के कोष्ठक मे विभाजित करके देखना कितना औचित्यपूर्ण है।
बीज शब्द- सांस्कृतिक पुनर्निर्माण, शैवागम, मार्क्सवाद, जड़ तत्व, विज्ञानवाद, आध्यात्मिक चेतना, सामाजिक परिवर्तन
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