भारत में महिलाओ के संरक्षण हेतु संवैधानिक अधिकार: विश्लेषणात्मक अध्ययन

Authors

  • डा0 डी0 पी0 यादव एवं अनुराधा

Abstract

प्रारंभिक वैदिक काल में महिलाओं को पुरुषों के समान दर्जा और स्थिति प्राप्त थी लेकिन बाद में महिला की भूमिका बिगड़ने लगी। बौद्ध काल के दौरान महिलाओं को पुरुषों के समान दर्जा प्राप्त था। दुनिया भर में महिलाओं को विभिन्न अवधियों के दौरान समान प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ा है, जैसे समाज में निम्न स्थिति, शिक्षा और संपत्ति का अधिकार न होना, बाल विवाह, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार, विधवाओं की खराब स्थिति, तथा समाज में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में उचित प्रतिनिधित्व न होना, साथ ही जीवन के विभिन्न चरणों में महिलाओं पर पुरुषों का नियंत्रण। महिलाओं को अधिकार और स्वतंत्रता देकर हम महिला सशक्तिकरण सुनिश्चित कर सकते हैं और महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों को भी कम कर सकते हैं। वर्तमान स्थिति में भले ही सरकार ने महिला आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय महिला कोष जैसे अन्य वैधानिक निकाय प्रदान किए, लेकिन वे दंतहीन बाघों की तरह काम कर रहे थे, इसलिए इन निकायों को मजबूत करने और अधिक शक्तियां देने की आवश्यकता है, वे समाज में महिलाओं की स्थिति में बदलाव देखने के लिए वास्तविक आधार पर प्रभावी ढंग से कार्य कर सकते हैं। महिलाओं की स्वतंत्रता भारतीय मानसिकता की पितृसत्तात्मक व्यवस्था से बाहर आनी चाहिए जो न केवल निर्णय लेने में महिलाओं की शक्ति सुनिश्चित करती है बल्कि महिलाओं की गरिमा और अधिकारों पर तर्कसंगत सोच भी लाती है। इस प्रकार यह लेख प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक भारत में महिलाओं की स्थिति, अधिकारों और भूमिका का विश्लेषण करता है तथा महिलाओं के सामने आने वाले मुद्दों और चुनौतियों पर जोर देता है तथा सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं में महिलाओं के अधिकारों की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता पर बल देता है, जिससे महिलाओं के जीवन स्तर में वास्तविक परिवर्तन या सशक्तिकरण आए।
मुख्य शब्द- महिलाएँ, अधिकार, सुरक्षा, कानून, संवैधानिक अधिकार

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Published

31-01-2024

How to Cite

1.
डा0 डी0 पी0 यादव एवं अनुराधा. भारत में महिलाओ के संरक्षण हेतु संवैधानिक अधिकार: विश्लेषणात्मक अध्ययन . IJARMS [Internet]. 2024 Jan. 31 [cited 2025 Sep. 7];7(01):146-52. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/739

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