शैक्षणिक और व्यावसायिक सफलता का पूर्णनुमान परिपेक्ष में श्री अरविंद घोष के शिक्षक मूल्य
Abstract
शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं होता तो मनुष्य एक पशु के समान होता उससे अच्छा बुरा समझने का ज्ञान नहीं होता। शिक्षा वह एक प्रकाश है जिसकी एक ज्योति से समाज का विकास होता है। शिक्षा के द्वारा बालक को एक अच्छा बनता देख सकते है। जिससे बच्चे का शारीरिक जीवन में उपयोगी मानसिक विवेक और आध्यात्मिक विकास हो सके। अगर हमें शिक्षा का ज्ञान होता है तो सभी दिशाओं का ज्ञान होता है जिससे हमें मालूम हो जाता है मालूम हो जाता है कहां क्या घटित हुआ है यह होने वाला है अगर हमें ज्ञान नहीं होता तो क्या हम उनके बारे में सोने का मौका मिल पाता। अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षा ही वह ज्योति है जो बालक को अंधेरे जीवन में एक रोशनी भर सकती है। शिक्षा के मानसिक बुद्धि चिंतन कल्पना शक्ति का भी रूप होना चाहिए। शिक्षा केवल ज्ञान प्रदान का माध्यम नहीं है। बल्कि यह व्यक्ति के मानसिक भावनात्मक और आध्यात्मिक में सहायता प्रदान करती है।
श्री अरविंद घोष का जन्म 15 अगस्त सन 1872 में बंगाल के कोलकाता में हुआ था इनके पिता एक डॉक्टर थे इन्होंने युवावस्था में स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी के रूप में भाग लिया किंतु बाद में यह एक जोगी व साधु बन गए और इन्होंने पांडिचेरी में एक आश्रम की स्थापना की। उन्होंने कई ग्रंथों की समन्वय जैसे वेद उपनिषद् आदि इसी तरह आधुनिक मनोविज्ञान में भावनात्मक बुद्धिमत्ता को शैक्षणिक और वेबसाइट सफलता के लिए महत्वपूर्ण माना है यह शोध पत्र भी अरविंद घोष के शिक्षक मूल्यों और भावनात्मक बुद्धिमत्ता के बीच के संबंधों का विशेषण करता है तथा उनके सी हाथों की प्रासंगिकता को वर्तमान शैक्षणिक और व्यावसायिक वातावरण में मानता है।
मुख्य शब्द - आत्मनिरंतर, मानसिक अनुशासन, आत्म जागरूकता, आंतरिक विकास
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