पंडित गोविंद बल्लभ पंत की शिक्षा नीति का सामाजिक न्याय पर प्रभाव
Abstract
पंडित गोविंद बल्लभ पंत भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के एक महान सेनानी ही नहीं बल्कि एक दूरदर्शी शिक्षाविद और समाज सुधारक भी थे उनकी शिक्षा नीति केवल ज्ञान की प्रचार तक सीमित नहीं थी बल्कि इसमें सामाजिक समर्थक आसमानता न्याय की भावना गहराई से अनन्य निहित थी पंत जी मानते थे की शिक्षा समाज में परिवर्तन सबसे शक्तिशाली साधन है उन्होंने शिक्षा केवल आवाज इधर के लिए सीमित न रखकर उसे समाज के प्रतिकार तक पहुंचाने का प्रयास किया विशेष पिछले वंचित दलित समुदाय के नियम के अनुसार शिक्षा माध्यम से ही समाज व्याप्त असमानता और भेदभाव को दूर किया जा सकता है उनकी नीतियों में समानशैक्षिक अवसर निश्चल और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा और भाषाओं तथा संस्कृत विविधता का सम्मान जैसे पहलू भी शामिल थे पंत जी यह भले बातें समझते थे कि जब तक समाज के सभी वर्गों का समान शिक्षा नहीं मिलेगी तब तक सामाजिक न्याय केवल एक आदर्श बना रहेगा। उन्होंने अपनी प्रशासनिक केवल में उत्तर प्रदेश में हिंदी भाषा को सरकारी कामकाज की भाषा बनाकर भाषा ही न्याय की स्थापना की उनके द्वारा लागू की गई शिक्षा योजना में लैंगिक समानता और सामाजिक समय समावेशिका को भी प्राथमिकता दी। पंडित गोविंद बल्लभ पंत की शिक्षा नीति एक समावेशी दृष्टिकोण पर आधारित थी जिसका लक्ष्य एक नया पूर्ण सामान सम्राट समाज का निर्माण उन्होंने शिक्षक को सामाजिक न्याय का मूल आधार बनाया और यह सुनिश्चित किया कि समाज के सबसे कमजोर वर्ग को भी अधिकार का ऑप्शन मिले जो उन्होंने गरिमा पूर्ण जीवन जीने के लिए आवश्यक है आज भी उनकी शिक्षा संबंधी सूचना अधिनियम भारत में सामाजिक न्याय की नीवं मानी जाती है।
मुख्य शब्द- पंडित गोविंद बल्लभ पंत, शिक्षा नीति, सामाजिक न्याय, उत्तर प्रदेश में शिक्षा सुधार, समान अवसर, निर्धन एवं वंचित वर्गों की शिक्षा, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और शिक्षा, सामाजिक समरसता, प्रगतिशील शिक्षा दृष्टिकोण, शिक्षा में समावेशिता
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