जलवायु परिवर्तनः चुनौती व समाधान
Abstract
मानव जिस स्थान विशेष में रहता है उस स्थान विशेष की पहचान वहाँ की जलवायु से की जाती है तथा स्थान विशेष में रहने वाले मानव के कार्य व व्यवहार तथा सामाजिक,राजनितिक व आर्थिक स्थिति यह दर्शाती है कि पृथ्वी पर उसका स्तर क्या है ? अर्वाचीन समय में पृथ्वी ने अपना रूप बदलना शुरू कर दिया है और यह परिवर्तन विकास नही बिनाश की तरफ ले जा रहा है। मनुष्य का विकास के नाम पर बढ़ता औद्योगीकरण, बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता यातायात साधन व नये-नये अविष्कार से मानव के अस्तित्व पर संकठ के बादल मंडराते हुए दिख रहें हैं।
पिछले २० से ३० वर्षों के अंतराल को देखें तो वातावरण में बहुत सारे परिवर्तन हुयें हैं। जिसने मानव से लेकर जीव-जन्तु को क्षरित किया है। संकेत यह है कि परिवर्तित वातावरण में बढ़ती गर्मी, अनियमित वर्षा, अकाल व बीमारी का प्रकोप बढ़ा है, जो हमारे जलवायु परिवर्तन का दुष्परिणाम है। अगर इसके परिवर्तन का कारण पता करें तो कारण भी साफ दिखाई देता है, मानव ने अपने विकास के लिए बिनाश का रास्ता खोल दिया है जो विकास से ज्यादा गहरा व घातक साबित हो रहा है। विकास एक अनवरत प्रक्रिया है जिसका होना स्वाभाविक है लेकिन विकास सिर्फ वर्तमान पीढ़ी को लाभ दे कहाँ की बुद्धिमानी है। विकास सतत होना चाहिए, विकास से आने वाली पीढ़ियों को लाभ हो और शैक्षणिक दिशा दे सके।
शब्दकुंजी- जलवायु परिवर्तन, विकास, मौसम, जीवन, जनसंख्या, ग्लोबल वार्मिंग, तापमान, कृषि, अर्थव्यवस्था, पेरिस समझौता अकाल, ग्रीन हाउस गैस, ओजोन परत, सुखा एयर कंडीसनर, प्राकृतिक संसाधन
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