बौद्ध काल में नारी का उत्थान एवं अवनति-एक साहित्यिक अध्ययन
Abstract
प्रस्तुत लेख बौद्ध काल से पूर्व एवं बौद्ध काल तथा बौद्ध काल के अन्तिम चरण में नारियों की उन्नति एवं अवनति को स्पष्ट करता है । लेख में स्पष्ट किया गया है कि महिलाओं को जो गौरव वैदिक काल में प्राप्त था वह उत्तर वैदिक काल में नहीं रहा महिलाओं को हीन समझा जाने लगा और उपभोग की वस्तु समझा जाने लगा। किन्तु बौद्ध काल महिलाओं के लिए वरदान साबित हुआ और महिलाओं ने उन्मुक्त वातावरण स्वाबलम्वन की ओर कदम रखा। महिलाओं की शिक्षा एवं महिलाओं को संघ में प्रवेश देकर, तथा महिलाओं को पुरूष के समान अधिकार देकर पूर्व से चले आ रहे वर्णगत वैषम्य को समाप्त हुआ। महिलाओं ने खुद को सांस्कृतिक परिवेश में लाकर साबित कर दिया कि महिलाएं भी पुरूषों के समान है। किन्तु कालान्तर में संघ में प्रवेश के बाद बौद्धिक धर्म की नैतिक चरित्र की पवित्रता नष्ट हो गयी और महिलाएं पुनः उपभोग की वस्तु बन गयी। प्रस्तुत लेख में यथा विश्लेषण किया गया है तथा समसामयिक विद्वानों के वक्तव्यों को समावेशित किया गया है।
महत्वपूर्ण शब्दाबली :- कंटकीर्ण, चक्रीय परिवर्तन, वैषम्य, समत्व, कुण्डकेशा, विशाखा, आम्बापाली, बहुविवाह, थेरी गाथा, सुत्त पिटक, जातक कथाएं, आम्रकुंज, अजंता, ऐलोरा, भिक्षु, भिक्षुणी ।
Published
How to Cite
Issue
Section
License
Copyright (c) 2018 IJARMS.ORG

This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.
*