रामायण काल में पर्यावरण संरक्षण - राज्य एवं प्रजा की भूमिका
Abstract
प्रस्तुत लेख ‘‘ रामायण काल में पर्यावरण संरक्षण -राज्य एवं प्रजा की भूमिका’’ में पर्यावरण शब्द की उत्पत्ति उद्भव एवं महत्व पर प्रकाश डाला गया। लेख में पर्यावरण से सम्बन्धित भारतीय एवं पाश्चात्य विचारधारा का यथा विवेचन किया गया है । तत्पश्चात रामायण काल में राज्य द्वारा संरक्षित उपवन, उद्यान को ससंदर्भित, विश्लेषित किया गया है। अयोध्या नगरी, मिथिला नगरी, लंका तथा किष्किन्धा नगरी के उद्यानों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। लेख में राज्य संरक्षण द्वारा उद्यानों, जलाशयों, राजमार्गों पर प्राकृतिक सौन्दर्य को भी वर्णित किया गया है। रामायण काल में राज्य में समुन्नत पर्यावरण में सामाजिक सहयोग को उद्घृत किया गया है। रामायण काल में वातावरण की शुद्धता व स्वच्छता के लिए यज्ञानुष्ठान का भी यथा विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
रामायणकाल में वातावरण अपने समुन्नत श्रेष्ठतव को पा सका जिसमें राजा व प्रजा दोनां का सहयोग स्पष्ट परिलक्षित होता है। महर्षि वाल्मीकि स्पष्ट किया कि ‘‘बिना प्रकृति संतुलन के कुछ भी संरक्षित नहीं रह सकता क्योंकि इस सम्पूर्ण जगत के अस्तित्व का आधार प्रकृति है। पर्यावरण संरक्षण के अभाव में जीवन शून्य है। अतः लेख में उद्घृत प्रसंगों से स्पष्ट है कि रामायण काल में पर्यावरण समुन्नत था जिसमें राजा व प्रजा का सहयोग व भूमिका समान थी।
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