सांस्कृतिक धरोहर- कुमाऊँ के कौथिक ‘मेले’

Authors

  • डॉ0 ज्योति साह

Abstract

कुमाऊँनी जनजीवन में मेंलों का अधिकता और संस्कृति पर उसके प्रभाव को स्पष्ट देखा जा सकता है। प्रस्तुत शोध पत्र में कुमाऊँनी संस्कृति के विभिन्न पक्षों का उल्लेख करते हुए सांस्कृतिक धरोहर के रूप में यहां के मेंलों के विषय में अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। मेलों के स्वरूप और विशेषताओं के आधार पर वर्गीकरण किया गया है। मध्यकाल से परम्परागत रूप निरन्तर लगाये जा रहे दो मेलों स्याल्दे बिखौती और देवीधुरा बग्वाल मेला का विस्तृत वर्णन और समाज पर उनके प्रभाव को भी प्रस्तुत किया गया।
मुख्य शब्द-कुमाऊँनीसंस्कृति, कौथिक, मेले, बग्वाल, स्याल्दे बिखौती, लोक जीवन।

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Published

30-09-2020

How to Cite

1.
डॉ0 ज्योति साह. सांस्कृतिक धरोहर- कुमाऊँ के कौथिक ‘मेले’. IJARMS [Internet]. 2020 Sep. 30 [cited 2025 Mar. 12];3(2):74-80. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/132

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Articles