श्यौराज सिंह बेचैन की आत्मकथा ‘मेरा बचपन मेरे कंधों पर‘ में दलित बाल-जीवन का समीक्षात्मक अनुशीलन

Authors

  • 1डॉ0 शार्दूल विक्रम सिंह

Abstract

हिन्दी दलित साहित्य के आधार स्तम्भों में श्यौराज सिंह बेचैन का नाम अग्रिम पंक्ति में रखा जाता है। इन्होंने नब्बे के दशक में लिखना शुरू किया । एक दलित परिवार में जन्में बेचैन जी को अपने शुरूआती जीवन में जो सामाजिक, आर्थिक, मानसिक कष्ट झेलने पड़े, उस वेदना, पीड़ा, टीस की मुखर अभिव्यक्ति उनके सम्पूर्ण दलित वर्ग में वे चर्चित एवं स्थापित हुए 2009 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘मेरा बचपन मेरे कंधों पर‘ से। बेचैन जी की इस आत्मकथा में सम्पूर्ण दलित वर्ग की पीड़ा, वेदना, कसक, उत्पीड़न, शोषण तथा सवर्ण जाति के द्वारा किए गए अनेक अत्याचारों की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। जिसका अनुभव उन्होंने अपने बाल-जीवन में महसूस किया तथा बेचैन जी ने दलित वर्ग पर हो रहे अत्याचारों, शोषणों एवं उत्पीड़न का यथार्थ आंकलन करके उनमें चेतना का संचार किया तथा उनकी कलम से निकला दलित साहित्य वर्तमान समय में दलितों को जाग्रत करके उन्हें समरूपता का संदेश दिया।
Keywords- श्यौराज सिंह बेचैन, आत्मकथा, ‘मेरा बचपन मेरे कंधों पर‘, दलित बाल-जीवन, दलित वर्ग की पीड़ा, वेदना, कसक, उत्पीड़न, शोषण समीक्षात्मक अनुशीलन।

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Published

15-09-2018

How to Cite

1.
1डॉ0 शार्दूल विक्रम सिंह. श्यौराज सिंह बेचैन की आत्मकथा ‘मेरा बचपन मेरे कंधों पर‘ में दलित बाल-जीवन का समीक्षात्मक अनुशीलन. IJARMS [Internet]. 2018 Sep. 15 [cited 2024 Nov. 21];1(2):210-2. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/219