इक्कीसवीं सदी के नवगीतों में जीवन-मूल्य
Abstract
नवगीत वैदिक काल से लेकर अद्यावधि तक नव तत्वों को सार्थक रूप देते हुए मनुष्य की आशाओं एवं आकांक्षाओं के साथ सम्पृक्त रहा है। युग के अनुसार इसके विषयगत रूप भले ही परिवर्तित हुए हों लेकिन सनातनधर्मी जीवन-मूल्य, परम्परायें, संवेदनाएं और लोकानुभूति उसी प्रकार से बनी हुई हैं।
मुख्य शब्द - इक्कीसवीं सदी, नवगीत, जीवन-मूल्य, सनातनधर्मी जीवन-मूल्य, परम्परायें, संवेदनाएं और लोकानुभूति।
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Published
15-01-2019
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1.
1डॉ0 शार्दूल विक्रम सिंह. इक्कीसवीं सदी के नवगीतों में जीवन-मूल्य. IJARMS [Internet]. 2019 Jan. 15 [cited 2024 Nov. 21];2(1):176-80. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/220
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