न्याय-वैशेषिक दर्शन में ईश्वर का स्वरूप
Abstract
ईश्वर एक ऐसा विषय है जिस पर सभ्यता के प्रारम्भिक काल से ही चिन्तन होता आ रहा है तथा प्रत्येक युग के मनीषियों ने इस चिरन्तन विषय पर अपना मौलिक चिन्तन अभिव्यक्त किया है। जहाँ एक तरफ इस दृश्यमान् जगत् से भिन्न किसी अलौकिक ईश्वरीय सत्ता के विषय में चिन्तन होता रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी विचारक थे, जो ऐसी किसी भी अलौकिक वस्तु को स्वीकार नहीं करते थे, जिसको ईश्वर शब्द से अभिहित किया जा सके तथा वे अलौकिक वस्तु की सत्ता के खण्डन में अपना विचार प्रस्तुत करते रहें हैं। कालक्रम से यह विरोध निरन्तर तीव्रतर होता रहा। एक ओर नास्तिक तथा कुछ आस्तिक दार्शनिक ईश्वर के सŸा के विरोध में ग्रन्थों के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत कर रहे थे, तो दूसरी तरफ ईश्वरवादी विचारक अपने कृतियों के माध्यम से ईश्वर की सŸा सिद्ध करने में तत्पर थे।
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