न्याय-वैशेषिक का परमाणुवाद
Abstract
सभ्यता के प्रारम्भ से जब मनुष्य चिन्तन करना प्रारम्भ किया होगा, तब उसने यह विचार किया होगा कि वस्तुतः मैं कौन हूँ? हम सब कौन हैं? हम लोगों का वास्तविक स्वरूप क्या है? हम लोगों के अतिरिक्त किसी अलौकिक चेतन की सŸा है? यदि है तो वस्तुतः उसका स्वरूप क्या है? यह दृश्यमान् जगत् क्या है? कैसे उत्पन्न हुआ है? किसने उत्पन्न किया है? आदि इसी तरह की बहुत सी जिज्ञासाएँ उत्पन्न हुई होगी तथा इन जिज्ञासाओं के शमन के लिए चिन्तन किया होगा और यही चिन्तन आगे चलकर सूक्ष्मतर होकर दर्शन का रूप धारण कर लिया होगा, जिससे कई प्रस्थान विकसित हुए होंगे।
ज्ञमलूवतके. रूढ़िवाद, न्याय, वैशेषिक का परमाणुवाद।
Additional Files
Published
How to Cite
Issue
Section
License
Copyright (c) 2018 IJARMS.ORG

This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.
*WWW.IJARMS.ORG