भारत में महिला सशक्तीकरण पंचायती राज संस्थाओं के संदर्भ में
Abstract
किसी भी ग्राम अथवा नगर के विकास के लिए सबसे बड़ा संसाधन वहां के लोग है। विकास की समस्याओं का हल समाज द्वारा ही संभव है। ग्राम अथवा नगर का विकास तब तक सम्भव नहीं हो पायेगा, जब तक कि उसमें स्थानीय भागीदारी सुनिश्चित न हो। क्योंकि स्थानीय स्तर की समस्याओं व उनके समाधान की बेहतर जानकारी उन्हीं के पास होती है। सशक्तीकरण एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से जागरूकता, कार्यशीलता, बेहतर प्रयास के द्वारा व्यक्ति अपने विषय में निर्णय लेने के लिए समर्थ एवं स्वतंत्र होता है। इस दृष्टि से देखें महिला का सशक्तीकरण एक सर्वांगाण व बहुआयामी दृष्टिकोण है। यह राष्ट्र निर्माण की मुख्य धारा में महिलाओं की पर्याप्त व सक्रिय भागीदारी में विश्वास रखता है। एक राष्ट्र का सर्वांगीण व समरसता पूर्ण विकास तभी सम्भव है जब महिलाओं को समाज में उनका यथोचित स्थान व पद दिया जाए, उन्हें पुरूषों के साथ - साथ विकास का सहभागी माना जाएं। महिलाएं भारत की आबादी का लगभग 48 प्रतिशत हिस्सा है, इसलिए यह आवश्यक है कि सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक क्षेत्र में उनकी सहभागिता सुनिश्चित की जाएं और उन्हें सुरक्षा प्रदान किया जाय। इसके लिए पितृसत्तामक सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है, साथ ही यह भी आत्मसात करना होगा कि महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में किये सभी प्रयास पुरूष विरोधी नही हैं वरन् यह विकास का अनिवार्य घटक है। यह प्रयास महिलाओं के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज के सशक्तीकरण के लिए आवश्यक है क्योंकि जब तक आधी आबादी का सशक्तीकरण नहीं होगा तब तक पूरे समाज का सशक्तीकरण संभव नही है। पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की सक्रिय सहभागिता राष्ट्र के संतुलित ंएवम् समावेशी विकास को बढ़ावा देगी जिससे भारतीय लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी।
शब्द संक्षेप- महिला सशक्तीकरण, पंचायती राज संस्थाएं, विकास, स्थानीय समस्याएं।
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