भारतीय सामाजिक संरचना में दलितों की स्थिति

Authors

  • डॉ प्रीती तिवारी

Abstract

प्रत्येक समाज में मुख्य रूप से दो वर्ग पाए जाते हैं एक संपन्न वर्ग जिसे पूंजीपति वर्ग,अभिजात वर्ग, उच्च वर्ग के नाम से जाना जाता है और दूसरा गरीब वर्ग, जिसे श्रमिक वर्ग, दुर्बल वर्ग, दलित वर्ग, कमजोर वर्ग या पिछड़े वर्ग के नाम से संबोधित किया जाता है। कमजोर वर्ग या दलित वर्ग का अध्ययन वर्तमान में अनेक दृष्टि से आवश्यक है। भारतीय संदर्भ में दलित वर्ग एक ऐसा वर्ग है जो सदियों से सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से शोषित एवं उपेक्षित रहा है। दलित वर्ग के अंतर्गत अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां तथा कुछ अन्य पिछड़े हुए समूह आते हैं। दलित शब्द का प्रयोग उन जातीय समूहों के लिए किया जाता है जो वर्ण व्यवस्था से बाहर एवं हिंदू सामाजिक संरचना सोपान में सबसे निम्न स्थान रखते हैं। निम्नतम स्थान का आधार इनके उस व्यवसाय से जुड़ा है जिसे अपवित्र समझा जाता है। अपवित्र व्यवसाय के कारण इन जातियों को अछूत (अस्पृश्य) समझा जाता है। ब्रिटिश काल में अछूतों या अस्पृश्यों को दलित वर्ग के नाम से पुकारा गया। अस्पृश्य जातियों के नामकरण के संबंध में शुरू से काफी विवाद रहा है इन्हें अछूत, दलित, बाहरी जातियां, हरिजन एवं अनुसूचित जाति आदि नामों से संबोधित किया जाता रहा है। इनकी आर्थिक स्थिति के अत्यंत दयनीय होने के कारण इनके लिए अछूत शब्द के स्थान पर दलित वर्ग शब्द का प्रयोग किया गया। आर्य समाज की मान्यता थी कि यह वर्ग अछूत न होकर दलित है क्योंकि इन्हें समाज ने दबाकर और सब प्रकार के अधिकारों से वंचित रखा है। इनकी निम्न दशा के लिए यह स्वयं उत्तरदायी न होकर समाज उत्तरदायी है। वर्ष 1931 की जनगणना के पूर्व तक इनके लिए दलित शब्द का ही प्रयोग किया जाता था। इस जनगणना के समय जनगणना अधीक्षक ने दलित शब्द के स्थान पर बाहरी जातियां शब्द का प्रयोग किया। इस शब्द के प्रयोग का कारण यह था कि इन जातियों का भारतीय सामाजिक संरचना में कोई स्थान नहीं था। इनको सार्वजनिक स्थानों जैसे- मंदिरों में पूजा करना, उच्च वर्ग के साथ उठना बैठना, उनके साथ खाना पीना, एक तालाब में स्नान करना, ऊंचे स्वर में बात करना आदि की मनाही थी। निम्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति होने के कारण यह जातियां सदियों से भेदभाव एवं शोषण का शिकार होती रही है। संविधान में इन्हें अनुसूचित जाति के नाम से जाना जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या में 16.66 प्रतिशत या 20.14 करोड़ आबादी दलितों की है। इन्हें अब सरकारी आंकड़ों में अनुसूचित जातियों के नाम से जाना जाता है। दलितों की इतनी अधिक जनसंख्या की उपेक्षा करके सामाजिक एकता, समरसता, सामाजिक पुनर्निर्माण एवं प्रगति संभव नहीं है।अनुसूचित जाति की सबसे अधिक जनसंख्या उत्तर प्रदेश में है।
मूल शब्द- संरचना, सोपान, अस्पृश्य, अनुसूचित, पुर्ननिर्माण।

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Published

30-09-2020

How to Cite

1.
डॉ प्रीती तिवारी. भारतीय सामाजिक संरचना में दलितों की स्थिति. IJARMS [Internet]. 2020 Sep. 30 [cited 2025 Mar. 12];3(2):211-6. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/429

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