मोक्ष के सम्बन्ध में वेद की अवधारणा

Authors

  • डा0 मनीषा कुमारी

Abstract

मोक्ष के सम्बन्ध में वेद की अवधारणा
1 डा0 मनीषा कुमारी
1 संस्कृत विभाग, वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा बिहार

मानव जीवन के लक्ष्य को हमारे ट्टषि, मुनि, दार्शनिक चिन्तको ने मनुष्य स्वभाव के अनुभवों को साक्षात् कर दो स्वरूपों में विभक्त किया है। प्रथम स्वरूप, समस्त संसारस्थ प्राणी इस जीवन को सुखमय बनाने के लिए प्रयत्नशील है अतः ऐहिक सुखाभिलाषा सर्वप्रथम जीवन का लक्ष्य प्रतीत होती है।
द्वितीय रूप मरणोपरान्त अथवा परोक्ष परिणति के विषय में प्रत्येक व्यक्ति चिन्तित, और धर्मिक व सामाजिक परिवेश के अनुसार स्वतः किन्ही स्वर्ग, मोक्ष आदि लोकों की कल्पना से अभिभूत है। अतः पश्चाद्भावी स्वजीवन को भी लक्ष्य मानता है। इसी भाव को वैशेषिक दर्शनकार कणाद मुनि ने इन शब्दों में अभिव्यक्ति दी है। ऐहिक सुख को ‘अभ्युदय’ और पारलौकिक आनन्द को ‘निःश्रेयस’ नाम दिया।1
परन्तु मनुष्यों के सम्पूर्ण जीवन का लक्ष्य परमतत्त्व, आत्मतत्त्व, अमृततत्त्व, अमृतमय लोक, स्वर्ग नाक आदि शब्दों से अभिहित लोक की प्राप्ति ही अभीष्ट है। बृहदारण्यकोपनिषद् में आत्मतत्त्व अथवा परमात्मतत्त्व का साक्षात्कार ही जीवन का लक्ष्य माना गया है।

स्ांकेत शब्दः मानव जीवन,मोक्ष का सम्बन्ध, वैदिक अवधारणा, सुखाभिलाषा

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Published

30-01-2020

How to Cite

1.
डा0 मनीषा कुमारी. मोक्ष के सम्बन्ध में वेद की अवधारणा. IJARMS [Internet]. 2020 Jan. 30 [cited 2025 Mar. 12];3(1):1-5. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/44

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