महिला रोगियों के अवसाद पर मनोवैज्ञानिक पद्धति का पड़ता सार्थक प्रभाव

Authors

  • डॉ आकांक्षा तिवारी

Abstract

अवसाद या डिप्रेशन का तात्पर्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में मनोभावों संबंधी दुख से होता है। इसे रोग या सिन्ड्रोम की संज्ञा दी जाती है। अधिकतर यह अवस्था व्यक्ति के प्रेम संबंध को लेकर गंभीर होती है किसी भी व्यक्ति के जीवन में अपनी जीवनसाथी के प्रति बहुत अधिक लगाव प्रमुखता या इसका सबसे बड़ा कारण होता है। डिप्रेशन की अवस्था में व्यक्ति स्वयं को लाचार और निराश महसूस करता है। उस व्यक्ति विशेष के लिए सुख, शांति, सफलता, ख़ुशी यहाँ तक कि सम्बन्ध तक बेईमानी हो जाते हैं। सम्बंधों में बेईमानी का परिचायक उसके द्वारा उग्र स्वभाव, गाली गलौज व अत्यधिक शंका करना इसमें शामिल होता है। इस दौरान उसे सर्वत्र निराशा, तनाव, अशान्ति, अरुचि प्रतीत होती है। मनोविश्लेषकों के अनुसार डिप्रेशन के कई कारण हो सकते हैं। यह मूलतः किसी व्यक्ति की सोच की बुनावट या उसके व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। डिप्रेशन लाइलाज बीमारी नहीं है। इसके पीछे जैविक, अनुवांशिक और मनोसामाजिक कारण होते हैं। यही नहीं जैवरासायनिक असंतुलन के कारण भी डिप्रेशन घेर सकता है। इसकी अधिकता के कारण रोगी आत्महत्या तक कर सकते हैं। इसलिए परिजनों को सजग रहना चाहिए। यदि परिवार का कोई सदस्य गुमसुम रहता है, अपना ज़्यादातर समय अकेले में बिताता है, निराशावादी बातें करता है तो उसे तुरंत मनोचिकित्सक के पास ले जायें।
शब्द संक्षेप- महिला रोगी, मनोभाव, असंतुलन, अवसाद, मनोवैज्ञानिक पद्धति एवं सार्थक प्रभाव।

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Published

31-01-2023

How to Cite

1.
डॉ आकांक्षा तिवारी. महिला रोगियों के अवसाद पर मनोवैज्ञानिक पद्धति का पड़ता सार्थक प्रभाव. IJARMS [Internet]. 2023 Jan. 31 [cited 2025 Mar. 12];6(1):66-70. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/450

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