संसदीय मूल्यों का पतनः भारतीय लोकतंत्र के परिप्रेक्ष्य में
Abstract
प्रस्तुत शोध पत्र में विश्व के विभिन्न देशों में अपनी शासन व्यवस्था के कुशलतम ढंग से संचालन हेतु पृथक पृथक शासन प्रणालियां संसदीय शासन प्रणाली, अध्यक्षीय शासन प्रणाली, अर्द्ध अध्यक्षीय शासन प्रणाली, साम्यवादी, पूँजीवादी, लोकतंत्रीय, अधिनायकवादी, संघात्मक, एकात्मक शासन प्रणाली भिन्न भिन्न देशों में प्रचलित है।
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में प्रतिनिधि निकाय के रूप में, विधि निर्मात्री संस्था शासन की जबाबदेयता सुनिश्चित करने, विभिन्न मुद्दों पर बहस करने का कार्य संसद के द्वारा किया जाता है, भारत में औपनिवेषिक शासकों की वेस्ट मिनिस्टर प्रणाली (संसदीय शासन प्रणाली) को अपनाया गया, इतना कहना पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि प्रतिनिध्यात्मक (गणतंत्रात्मक) शासन का मूल आधार भारत के वैदिक ग्रंथों (ऋग्वेद, अथर्ववेद) में गणराज्यों की सभा, समितियां, और गणपति के रुप मे विघमान था, जो आधुनिक समय में क्रमशः संसद, मंत्रिमंडल और प्रधानमंत्री के रूप में विद्यमान है, भारत में विद्यमान संस्थाएं भारत की जमी में विकसित हुई, स्वदेषी अनुभव लिच्छिवी, कपिलवस्तु, पावा, कुषीनगर, निम्न गणराज्यों का रहा है। आज संसद जो भारत की संवैधानिक संस्था जनता द्धारा चुने गये जन प्रतिनिधि जनता की आवाज को सदन में अभिव्यक्ति देने, जन हित से संबंधित विधि बनाने, जनता की आवाज को बुलंद करने का एक सर्वोत्तम जरिया है, कोई भी संस्था हो संवैधानिक या गैर संवैधानिक, निजी या सार्वजनिक सभी संस्थाओं के अपने कुछ निहित मानक, मूल्य व सिद्धांत होते हैं, यदि संस्था अपने मानक, मूल्यों का सुदृढता से पालन करते हैं, तो इसमें उस संस्था की सफलता छुपी होती है, जनता का विश्वास, सहमति का निर्माण व विकास होने के साथ वैधता बढ़ती है, साथ ही लोकतंत्र मजबूत होता है, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के शुरूआती दौर में संसद में संसदीय गतिविधि, संसदीय कार्यवाही का संचालन मर्यादित, नैतिक, अनुशासित, तरीके से होते हुए, सभ्य मर्यादित शब्दों का प्रयोग, डटकर विपक्ष की मजबूत भूमिका के साथ स्वस्थ आलोचना होती थी जिसमें स्वस्थ वैचारिक विमर्श, तर्क वितर्क, वाद-प्रतिवाद होता था, जिसका आधार मत भेद था मन भेद नहीं, किंतु आज सदन में अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल, अनैतिक व्यवहार, मिर्च छिड़काव, कुर्सी तोड़ना, सशक्त विपक्ष का अभाव, अतार्किक वाद विवाद ने स्थान ले लिया, जनता के हितों के प्रतिनिधित्व का स्थान संकीर्ण हितों ने बना लिया, यह संसदीय मूल्यो के ह्नास को व्यापक स्तर पर प्रतिबिंबित करता है, प्रस्तुत शोधपत्र संसदीय मूल्यों का ह्नास भारतीय लोकतंत्र के परिप्रेक्ष्य में इसके कारणों, प्रभावों, उपायों का उल्लेख करता है।
मुख्य शब्दावली- संसद, संसदीय मूल्य, भारतीय लोकतंत्र, जनप्रतिनिधि, पारदर्शिता, जबाबदेयता, संसदीय कार्यवाही।
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