मनुष्य के व्यक्तित्व एवं सामाजिक संवर्धन में यम- नियम की भूमिका

Authors

  • रूचि पाटीदार

Abstract

जीवन के प्रत्येक क्षेत्र चाहे वह व्यक्तित्व संवर्धन हो या सामाजिक संवर्धन उनमें स्वास्थ्य एवं विकास की परिकल्पना को यम एवं नियम अच्छी प्रकार से परिभाषित करते हैं मनुष्य जीवन से जुड़े विविध पक्षों में उनकी प्रासंगिकता सर्वमान्य है जहां विश्वभर में आज मूल्यों के संरक्षण की आवश्यकता महसूस की जा रही है चाहे मनुष्य जीवन का कोई भी क्षेत्र क्यों ना हो वहां मूल्य से अछूता नहीं है मूल्य जीवन में उपयोगिता को तय करते हैं यह मनुष्य से जुड़े बहुआयामी पक्षो का नियमन एवं प्रबंधन करते हैं मूल्य का क्षीण होना समाज को निम्न स्तर पर ले जाता है।
यम- नियम के अंगों की व्यवस्था सबके लिए समान है यह किसी एक जाति धर्म या संप्रदाय की सोच का दायरा नहीं है यम- नियम के अंगों का पालन केवल मनुष्यत्व के उत्थान को प्रदर्शित करना है। यम एवं नियम की संहिता मनुष्य को चारित्रिक निर्माण, संयम, शांति, संवेदनशीलता, सहिष्णुता, ईमानदारी जैसे नैतिक धर्म की शिक्षा के साथ शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक स्वास्थ्य, शुद्धि एवं संतुलन की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना है इस प्रकार यहां मनुष्य जीवन को संपूर्णता से देखने का विधान है जो कि मानव जीवन की सर्वोत्तम संस्कृति है।
कूट शब्द- संवर्धन, यम- नियम, मूल्य, समाज, सार्वभौम।

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Published

31-07-2023

How to Cite

1.
रूचि पाटीदार. मनुष्य के व्यक्तित्व एवं सामाजिक संवर्धन में यम- नियम की भूमिका. IJARMS [Internet]. 2023 Jul. 31 [cited 2025 Mar. 12];6(02):52-5. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/527

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