संगीत में कल्पना तथा सृजन का महत्व
Abstract
संगीत कला का सम्बन्ध मानवीय संवेदनाओं से है। यह कला गायन, वादन तथा नृत्य तीनों विधाओं का समागम है। जब भावनाओं की अभिव्यक्ति स्वर, लय तथा ताल में निबद्ध कर की जाती है, तब संगीत का जन्म होता है। संगीत एक ऐसी विशिष्ट ललित कला है जिसमें कलाकार अपने मनोगत भावों को कल्पना से अलंकृत कर सृजन के माध्यम से मूर्त रूप प्रदान करता है। संगीत कला साधन भी है तथा साध्य भी। यह मूर्त तथा अमूर्त दोनों ही रूपों में विद्यमान है। संगीत कला का प्रभाव चेतन तथा अचेतन पर समान रूप से पड़ता है। इस कला का प्रभाव चिरकालिक तथा सर्वव्यापी है संगीत कला के सर्वश्रेष्ठ होने का आधार है संगीत कला में कल्पना तत्व का विद्यमान होना। कल्पना वह शक्ति है जिसके माध्यम से कलाकार अपनी कला का पूर्णतः एक नवीन तथा पृथक स्वरूप प्रदान कर सकता है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। श्रोता सदैव कुछ परिवर्तित तथा नवीन श्रवण की इच्छा से प्रेरित हो संगीत कार्यक्रमों में आता है। किसी भी कलाकार की उपज का काम उसकी कल्पना क्षमता तथा सृजनात्मकता की क्षमता पर ही निर्भर करता है तथा कलाकार का अभ्यास तथा उसकी साधना उसकी कल्पनाओं को मूर्त रूप प्रदान कर नवीन सृजन कर कुछ नया, परिवर्तित श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत करने में सहायक होती है। कलाकार की श्रेष्ठता तथा किसी भी संगीत कार्यक्रम में सफलता उस कलाकार की कल्पना तथा सृजनात्मकता पर ही मात्र निर्भर करती है।
मुख्य शब्द- कल्पना, सृजनात्मकता, श्रोता, कलाकार, मूर्त, निबद्ध
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