हरित अर्थव्यवस्था और सतत विकासः संभावनाएँ और चुनौतियाँ (1947-2022)

Authors

  • डा0 मनोज कुमार अवस्थी

Abstract

हरित अर्थव्यवस्था और सतत विकास आधुनिक वैश्विक विमर्श के केन्द्रीय विषय बन चुके हैं। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति (1947) के पश्चात आर्थिक विकास की प्राथमिकताएँ औद्योगीकरण और कृषि सुधारों पर केन्द्रित रहीं, किन्तु पर्यावरणीय संतुलन की उपेक्षा से दीर्घकालिक समस्याएँ उत्पन्न हुईं। 1992 के रियो पृथ्वी सम्मेलन के बाद भारत ने पर्यावरण-संरक्षण और सतत विकास को अपनी नीतियों में सम्मिलित करना आरम्भ किया। 2000 के बाद वैश्विक जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ उत्पादन तकनीकों और कार्बन न्यूनीकरण जैसे विषयों ने हरित अर्थव्यवस्था के विचार को अधिक प्रासंगिक बना दिया। इस शोध पत्र में 1947 से 2022 तक भारत में हरित अर्थव्यवस्था की अवधारणा, विकास की दिशा, उपलब्ध अवसरों और सामने आई चुनौतियों का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। इसमें नीति सुधारों, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, तकनीकी नवाचार, निजी क्षेत्र की भूमिका, तथा सामाजिक सहभागिता का विश्लेषण किया गया है। निष्कर्षतः यह स्पष्ट होता है कि हरित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण न केवल पर्यावरणीय संरक्षण के लिए आवश्यक है, बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक समृद्धि और सामाजिक न्याय के लिए भी अनिवार्य है। फिर भी, नीति कार्यान्वयन, वित्तीय संसाधन, तकनीकी क्षमता और सामाजिक चेतना जैसे क्षेत्रों में गंभीर चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिन्हें दूर करने के लिए समन्वित प्रयास अपेक्षित हैं।
मुख्य शब्द- हरित अर्थव्यवस्था , सतत विकास, जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा, पर्यावरण नीति, स्वच्छ तकनीक, भारत का विकास, हरित निवेश, सतत कृषि, वैश्विक सहयोग

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Published

31-07-2022

How to Cite

1.
डा0 मनोज कुमार अवस्थी. हरित अर्थव्यवस्था और सतत विकासः संभावनाएँ और चुनौतियाँ (1947-2022). IJARMS [Internet]. 2022 Jul. 31 [cited 2025 Aug. 11];5(2):174-85. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/724

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