भारतीय ग्रन्थरत्न उपजीव्य काव्य महाभारत में राष्ट्रीय भावना एवं साम्राज्य भावना की प्रासंगिकता - एक साहित्यिक अध्ययन
Abstract
प्रस्तुत लेख ‘‘भारतीय ग्रन्थरत्न उपजीव्य काव्य महाभारत में राष्ट्रीय भावना एवं साम्राज्य भावना की प्रासंगिकता- एक साहित्यिक अध्ययन’’ के अन्तर्गत उपजीव्य काव्य महाभारत में राष्ट्रीय भावना तथा साम्राज्य भावना का विश्लेषण किया गया है। लेख में शय्यासीन भीष्म के साथ युधिष्ठिर संवाद में वर्णधर्म, आश्रम धर्म, राष्ट्र रक्षा, सैन्य व्यवस्था, धार्मिक अनुष्ठानों के सथ राजा के कर्तव्यों पर विस्तार से संवाद प्रस्तुत किया है। भारतीय उपजीव्य काव्यों में आत्मिक तत्व विद्यमान है। जो धार्मिक, सांस्कृतिक तथा दार्शनिक विचारधारा के त्रिवेणी संगम हैं। लेख में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के बल पर राष्ट्र रक्षा को महत्व देते हुए स्वर्गगमन की कामना की गयी है। लेख में तीर्थों तथा यज्ञों के महत्व को यथा विवेचित किया गया है।
गायों पर महर्षि च्यवन तथा नहुष के उपाख्यानों को प्रतिष्ठित कर विराट, युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव द्वारा गौरक्षा हेतु त्रिगर्तराज सुशर्मा को परास्त करने का प्रसंग लेख में उद्घृत किया गया है। कौरवों पर पांडवों द्वारा विजय का प्रसंग यथा विवेचित है। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में चीन, लंका तथा यवनों द्वारा अधीनता स्वीकार कर भाग लेना साम्राज्यवादी नीति का पक्ष पोषण करता है वहीं युधिष्ठिर द्वारा अश्वमेध यज्ञ का सम्पूर्ण भारत विजय अभियान महाभारत में राष्ट्रीय भावना को पूर्ण परिलक्षित करता है। लेख में वेद व्यास द्वारा राजा को शिक्षा प्रदान करना भी राष्ट्रीय भावना का द्योतक है। प्रमाणिक प्रसंगों उद्धहरणों को यथा विश्लेषित कर लेख को पूर्ण मौलिकता प्रदान की है।
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