विनय पत्रिका - एक चिन्तन’

Authors

  • 1डॉ0 अवधेश कुमार शुक्ला

Abstract

आज इस धरातल पर शायद ही कोई व्यक्ति हो, जो तुलसीदास से परिचित न हो। तुलसीदास जन्मजात भक्त थे। भज् (सेवायाम्) धातु से ’क्तिन्’ प्रत्यय लगाने पर ’भक्ति’ शब्द की उत्पत्ति होती है। भगवान का निरन्तर भजन या उनकी अविरल सेवा ही भक्ति है। इसी भक्ति की परिभाषा ’नारद भक्ति सूत्र’ में कुछ इस प्रकार दी गयी है-
’’सा त्वस्मिन् परम प्रेम रूपा। अमृत स्वरूपा च।’’
अर्थात (हे प्राणियों) - परमात्मा से परम प्रेम करना ही भक्ति है, यह भक्ति अमृत रूपा होती है। इसी प्रकार शांडिल्य भक्ति सूत्र में - ’’सा परानुरक्तिरीश्वरे’’ कहा गया है अर्थात् ईश्वर में परम अनुरक्ति ही भक्ति है।

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Published

15-09-2018

How to Cite

1.
1डॉ0 अवधेश कुमार शुक्ला. विनय पत्रिका - एक चिन्तन’. IJARMS [Internet]. 2018 Sep. 15 [cited 2025 Mar. 12];1(2):174-9. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/152