आर्थिक सुधारों को मानवीय संस्पर्श

Authors

  • डॉ0 राजेश चन्द्र मिश्र

Abstract

रवीन्द्रनाथ टैगोर की एक सुप्रसिद्ध कविता है ‘‘सोनार तरी’’। अर्थात् सोने की नाव ! सोने की नाव में सुनहरे धान के लिए जगह है, लेकिन किसान के लिए कोई जगह नहीं है। स्वाभाविक भी है। अतः नाविक तीखेपन के साथ बरजने की मुद्रा में कह उठता है ‘‘ठाइ नाइं ठाई नाइं, आमार छोटो तरी।’’ जगह नहीं है, जगह नहीं है, मेरी छोटी-सी नाव है- सोने की। सोने की नाव, सोने का धान- उसमें किसान के लिए जगह कहाँ हो सकती है ? नाव का संकुचित दायरा जो ठहरा .....। कुछ ऐसी ही स्थिति आज के आर्थिक विकास की हो गयी है।
शब्द संक्षेप- आर्थिक सुधार, मानवीय संस्पर्श, आर्थिक विकास, उदारीकृत बाजारवादी अर्थव्यवस्था।

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Published

01-06-2018

How to Cite

1.
डॉ0 राजेश चन्द्र मिश्र. आर्थिक सुधारों को मानवीय संस्पर्श. IJARMS [Internet]. 2018 Jun. 1 [cited 2024 Nov. 21];1(1):192-3. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/268

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