नागार्जुन की कविता का जमीनी लोक

Authors

  • डॉ0 परीक्षित सिंह

Abstract

नागार्जुन की कविता का इष्ट सामान्य जन था। उनके काव्य में लोक की समस्या का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया गया है। सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक जीवन की विसंगतियों का यथार्थ चित्रण ही उनके काव्य की मुख्य विशेषता है। शोषक का विरोध और शोषित की पक्षधरता उनके काव्य में सर्वत्र व्याप्त है। उनके काव्य में साम्राज्यवाद तथा सामंतवाद की तीव्र आलोचना है तो दूसरी तरफ आजादी के बाद उपजे राजनीतिक खोखलेपन का जीवन्त चि़त्रण मिलता है। नागार्जुन के काव्य में ‘मनुष्यता‘ को केन्द्र में रखा गया है।
बीज-शब्दः- सामंतवाद, लोक, विश्थापन, हरिजन, लोकहित, व्यंग्य, प्रजातंत्र प्रगतिशीलता, शोषक, शोषित, साफगोई, संघर्ष, राजनीतिक खोखलापन, त्रासद,मनुष्यता आदि।

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Published

31-01-2023

How to Cite

1.
डॉ0 परीक्षित सिंह. नागार्जुन की कविता का जमीनी लोक. IJARMS [Internet]. 2023 Jan. 31 [cited 2025 Mar. 12];6(1):93-6. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/455

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