पर्यावरण की रक्षा-भविष्य की सुरक्षा
Abstract
पर्यावरण की सुरक्षा से ही मानव जीवन की रक्षा संभव है। जंगल व पहाड़ों के होने से ही पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। आज मनुष्य तेजी से वनों को नष्ट कर रहा है। जीव जन्तुओं को मार रहा है। वह प्राकृतिक वस्तुओं का दोहन कर पूरी तरह विलासिता का जीवन जी रहा है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ने हमारे चारों तरफ के वातावरण को मानव जीवन के लिए खतरनाक बना दिया है। पर्यावरण असुरक्षित होने के कारण मानसून पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इसी का परिणाम है कि वर्षा समय पर नहीं हो रही है। जिससे कृषि कार्य प्रभावित हो रहा है। गर्मी के समय गर्मी इतनी ज्यादा कि लोग सहन नहीं कर पा रहे हैं और मृत्यु का शिकार हो रहे हैं। पेड़ों से हमें आक्सीजन मिलती है। कोरोना काल में आक्सीजन की कमी के कारण लाखों लोग काल के गाॅल में समा गए। पेड़ों की जड़ें मिट्टी को मजबूती से जकड़े रहती हैं। पेड़ों के कटने से मिट्टी की ऊपरी परत बह जा रही है, जिस कारण दिन.प्रतिदिन पैदावार में कमी होती जा रही है। बढ़ते वैज्ञानिक अविष्कार से मनुष्य जितना विकास कर रहा है उतना ही पतन की ओर भी अग्रसर है।
पर्यावरण को बचाने का सूत्र भारतीय परम्परा में मिल सकता है। इसका वर्णन वेद, पुराण में देखा जा सकता है। यदि भारत की परम्परागत जीवन शैली को देखें तो यह साफ हो जाएगा कि प्राचीन काल से ही प्राकृतिक वस्तुओं को सुरक्षित रखकर जीवन जीनें का प्रावधान है। प्राचीन काल में साधु-सन्त वन में ही निवास करते थे तथा नीम, पीपल, तुलसी, शेर, चूहा, हाथी आदि की पूजा करते थे तथा इनमें ही ईश्वर को देखते थे। एक साधारण इंसान पेड़ पौधों के बीच रहकर ज्ञान प्राप्त किए और कालान्तर में लोगों ने उन्हें भगवान मान लिया। प्राचीन काल मंे कुछ लोग पेड़-पौधों से औषधि/दवाईयां बनाकर असाध्य रोगों का इलाज करते थे, जिसकी महिमा का गुणगान रामायण, महाभारत आदि महाकाव्यों में मिलता है। आज भी कुछ लोग पेड़ पौधों के जड़ों, पत्तियां, छाल आदि से दवा बनाकर रोगों का इलाज करते हैं।
keywords- पर्यावरण, जल, जंगल, जमीन, हवा, मानव जीवन, एवं भविष्यगत पर्यावरणीय संरक्षण।
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