भारतीय लोकतंत्र का दुर्बल पक्षः नारी पराधीनता के वर्तमान पदचिन्ह

Authors

  • 1राकेश कुमार निषाद 2डॉ. कौशलेंद्र कुमार सिंह

Abstract

भारतीय लोकतंत्र का दुर्बल पक्षः नारी पराधीनता के वर्तमान पदचिन्ह

प्रस्तुत शोध पत्र ’भारतीय लोकतंत्र का दुर्बल पक्षः नारी पराधीनता के वर्तमान पद-चिन्ह’ समसामयिक सामाजिक समस्या पर आधारित है) जिसमें भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था और समाज में लैंगिक भेदभाव और नारी अधीनता के वर्तमान पद चिन्हों की पहचान की गई है। यह शोध पत्र इस बात का भी वर्णन करता है कि अमुक समस्या भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है।
भारत में राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना के बावजूद भी सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो पाई है। समाज परंपरागत नियमों से संचालित है, जो पुरुष प्रधानता पर आधारित है। राजनीतिक रूप से नारी को समान अधिकार मिल जाने के बावजूद भी राजनीतिक और सामाजिक रूप से इनके सशक्तिकरण होने में कई बाधाएं हैं, जिन्हें नारी पराधीनता के वर्तमान पद चिन्ह कहा जा सकता है।
वर्तमान में नारी पराधीनता की पद चिन्ह को समाप्त कर भारत में लैंगिक और सामाजिक भेदभाव मुक्त सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना करनी होगी। बिना सामाजिक लोकतंत्र के राजनीतिक लोकतंत्र अधूरा है, क्योंकि लोकतंत्र केवल राजनीतिक प्रणाली ही नहीं बल्कि जीवन पद्धति भी है।
आधी आबादी के सुदृढ़ प्रतिभागिता के अभाव में लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता) इसलिए इस समस्या पर ध्यान केंद्रित कर इसका निराकरण जरूरी है जिसे इस शोध पत्र के निष्कर्ष में दिखाया गया है।
संकेतशब्द- भारतीय लोकतंत्र, नारी पराधीनता, नारी चेतना, लैंगिक भेदभाव, परंपरागत नियम, सामाजिक लोकतंत्र, पुरुष प्रधानता।

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Published

30-09-2020

How to Cite

1.
1राकेश कुमार निषाद 2डॉ. कौशलेंद्र कुमार सिंह. भारतीय लोकतंत्र का दुर्बल पक्षः नारी पराधीनता के वर्तमान पदचिन्ह. IJARMS [Internet]. 2020 Sep. 30 [cited 2025 Mar. 12];3(2):26-38. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/53

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