जनसंख्या, विकास एवं पर्यावरण : वैश्विक प्रवृत्तियाँ और भा

Authors

  • डा0 सरनपाल सिंह

Abstract

जनंसख्या, विकास व पर्यावरण एक त्रिआयामी प्रक्रिया है जो समय के चौथे आयाम में आबद्व है। जनसंख्या व पर्यावरण की आपसी क्रिया प्रतिक्रिया विकास की प्रक्रिया को जन्म देती है जो सकारात्मक भी हो सकता है तथा नकारात्मक भी। विकास की प्रक्रिया में मानव जनसंख्या एवं उसके आस-पास का वातावरण लक्ष्य भी होता है एवं साधन भी। समय के चौथे आयाम में विकास की वही प्रक्रिया सफल मानी जाती है जो न केवल इन दोनो में संतुलन बनाये रखें बल्कि दोनों को सकारात्मक दिशा को परिवर्तित कराने के साथ-साथ दोनों के अर्न्तसंबधों को स्वस्थ व मजबूत भी बनायें।1
आज के विश्व की सबसे दुखद स्थिति यह है कि जनसंख्या ही पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा मुददा बन गयी है। अनुमान के आधार पर यह धरती 6 अरब से 147 अरब लोगों को बोझ सह सकती है2 मगर हालात यह है कि अभी से हाहाकार मच गया है। जलवायु परिवर्तन, कार्बन उत्सर्जन, ओजोन मंडल का क्षय, वैश्विक तापमान में वृद्धि आदि बेहद खतरनाक स्थिति की ओर इशारा कर रहे है। तेजी से नष्ट होते हुए जंगल, हवा पानी और मिट्टी में घुलता हुआ जहर, बेलगाम बढ़ती जनंसख्या आदि मानव जाति के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे है। यह सही है कि दीर्घकाल में शायद धरती अपने इस बिगड़े हुये संतुलन को पुनः हासिल भी कर ले, परन्तु शायद मानव जाति के पास इतना समय न हो।
ज्ञमलूवतकेरू जनसंख्या, विकास, पर्यावरण, वैश्विक प्रवृत्तियाँ, मानव संसाधन, तकनीक, उत्पादन, आर्थिक वृद्धि और विकास के प्रतिरूप

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Published

31-01-2021

How to Cite

1.
डा0 सरनपाल सिंह. जनसंख्या, विकास एवं पर्यावरण : वैश्विक प्रवृत्तियाँ और भा. IJARMS [Internet]. 2021 Jan. 31 [cited 2025 Jul. 4];4(1):50-61. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/60

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