महिला सशक्तिकरण, चुनौतियां तथा कार्य योजनाएं- समीक्षात्मक अध्ययन
Abstract
महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य है महिलाओं को पुरुषों के बराबर वैधानिक, राजनीतिक, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में उनके परिवार, समुदाय, समाज एवं राष्ट्र की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में निर्णय लेने की स्वयतता से होता है। 21 वीं सदी के दूसरे दशक में राजनीति के स्वरूप में बुनियादी बदलाव हुए हैं और इसने एक परिवर्तनशील वैश्विक माहौल बनाया है। भारत में समानता के लिए महिलाओं तथा विभिन्न समूह आगे बढे है। राजनीति में महिलाओं की वैश्विक रैंकिंग में 191 देशों में भारत 149वें पायदान पर है। समाज में आम तौर पर महिलाओं को विभिन्न मुद्दों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिन्हे समाप्त किया जाना अति आवश्यक है। वर्तमान समय में महिलाएं आँगन से लेकर अंतरिक्ष तक पहुँच गयी हैं लेकिन फिर भी कुछ क्षेत्रों में महिलाओं की हालत दयनीय बनी हुई है इसलिए महिलाओं को समाज में और भी सशक्त बनाने के लिए सरकार अनेको दृढनिश्चयी प्रयास कर रही है। निश्चित रूप से कार्यस्थलों पर महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये सुरक्षा की सुनिश्चितता के साथ- साथ यातायात साधनों की पहुँच में विस्तार के साथ सार्वजनिक स्थलों पर प्रसाधन केंद्रों आदि के तंत्र को मज़बूत करना बहुत ही आवश्यक है। महिलाओं की असीमित क्षमता और योग्यता को ध्यान में रखते हुए ज़रूरी है कि इन्हें आर्थिक एवं सामरिक क्षेत्र के केंद्र में रखा जाना चाहिए ताकि देश विकास में विकास का नया आयाम स्थापित हो सके।
मुख्य शब्दावली-शिक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण, सामाजिक समानता, रोजगार, महिला प्रतिनिधित्त्व
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