मानवाधिकार और उसके बदलते आयाम

Authors

  • डॉ0 बिपिन कुमार शुक्ल

Abstract

परिवर्तन प्रकृति का सार्वभौमिक नियम है। इस परिवर्तन के फलस्वरूप समाज में विद्यमान नियम कानून और विचार में भी परिवर्तन अवश्यंभावी है। इसी क्रम में मानव अधिकारों संबंधी विचार, जो मानव सभ्यता के साथ ही अस्तित्व में आया, मे भी विविध परिवर्तन परिलक्षित हुए हैं। आरंभिक दौर में मानव अधिकारों के जिस स्वरुप को महत्ता प्रदान की गई वे मूल रूप से नागरिक एवं प्राकृतिक अधिकार थे ।कालांतर में सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मानव अधिकारों को अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय पटल पर स्वीकार किया गया। साथ ही साथ मानवाधिकारों की व्यक्ति केंद्रित संकल्पना समूह और वर्ग आधारित संकल्पना की ओर अग्रसर होती दिखाई देती है। आधुनिक दौर में विश्व के तेजी से बदलते सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिदृश्य में मानवाधिकारों की संकल्पना निरंतर नवीन विचारों और स्वरूपों को ग्रहण कर रही है। प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य मानव अधिकारों के विचारों में अब अपघटित हो रहे उत्तरोत्तर परिवर्तनों को रेखांकित करते हुए उनकी उपादेयता का विश्लेषण करना है।
शब्द पूंजीः- प्राकृतिक अधिकार ,अंतर्निहित अधिकार, मौलिक अधिकार ,संयुक्त राष्ट्र चार्टर, मानवीय सहायता,मानवीय हस्तक्षेप, समूह आधारित मानवाधिकार, मानवाधिकारों की पीढ़ियां, आत्म-निर्णय का अधिकार, सांस्कृतिक विरासत का अधिकार, स्वस्थ वातावरण का अधिकार आदि।

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Published

15-05-2019

How to Cite

1.
डॉ0 बिपिन कुमार शुक्ल. मानवाधिकार और उसके बदलते आयाम. IJARMS [Internet]. 2019 May 15 [cited 2025 Mar. 12];2(2):182-8. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/272

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