भारतीय संगीत मे ताल की उपादेयता

Authors

  • डा0 दीपाली श्रीवास्तव

Abstract

स्वर और लय संगीत रूपो भवन के दो आधार स्तम्भ है। स्वर से राग और लय से ताल लय नापने के लिय मात्रा की रचना की गई संगीत गायन, वादक और नृत्य की त्रिवेणी हैं। इन तीनो मे ताल का बडा महत्व है। गायक वादक को हमेशा ताल का ध्यान रखना पडता है वाह नई - नई कल्पना करता है किन्तु ताल से बाहर नही जा सकता। जितनी सुन्दरता से वाह अच्छे गायक वादक मे ताल की कुशलता होना आवश्यक से और नृत्य के अंग प्रदर्शन और लय के माध्यम से मात्रो को प्रकट किया जाता है इतना ही नही तबला के बोलो के टुकडो को भी नृत्य द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
उचित ताल के प्रयासो से ही संगीत मे रस ऋृष्टि होती है और तयी आनंद प्राप्त हामता है। अर्थत् कह समते है कि संगीत मे ताल को प्राण कहा गया है और शरीर बिना प्राण के शव के मान होता है इस लिये लय व ताल एक दूसरे मे पूरक है।
शब्द संक्षेप- भारतीय संगीत, तबला, ताल, वादक, उपादेयता।

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Published

15-09-2018

How to Cite

1.
डा0 दीपाली श्रीवास्तव. भारतीय संगीत मे ताल की उपादेयता. IJARMS [Internet]. 2018 Sep. 15 [cited 2025 Jul. 4];1(2):252-5. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/362

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