मौलिक कर्तव्य और नागरिक जिम्मेदारी: भारतीय विधि में वर्तमान स्थिति (1947-2019)

Authors

  • सतीश तिवारी

Abstract

यह शोधपत्र मौलिक कर्तव्य और नागरिक जिम्मेदारी, भारतीय विधि में वर्तमान स्थिति (1947-2019) विषय पर केंद्रित है। भारतीय संविधान के प्रारंभिक संस्करण में नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्यों का कोई उल्लेख नहीं था। हालांकि, 1976 में आपातकाल की पृष्ठभूमि में 42वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 51 क के तहत 10 मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया। बाद में, 2002 में 86वें संविधान संशोधन द्वारा एक और कर्तव्य जोड़ा गया, जिससे इनकी संख्या 11 हो गई। यह शोधपत्र 1947 से 2019 तक मौलिक कर्तव्यों के ऐतिहासिक विकास, उनकी कानूनी स्थिति और न्यायालयों द्वारा की गई व्याख्या का विश्लेषण करता है। साथ ही, इसमें मौलिक कर्तव्यों और नागरिक जिम्मेदारियों के बीच के संबंधों को रेखांकित किया गया है। शोध में पाया गया कि मौलिक कर्तव्य नागरिकों में उत्तरदायित्व और अनुशासन की भावना उत्पन्न करते हैं, लेकिन उनके गैर-न्यायसंगत स्वरूप के कारण उनका प्रभाव सीमित रहता है। इसके बावजूद, इन कर्तव्यों का शिक्षा, समाज और कानून के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
मुख्य शब्द- मौलिक कर्तव्य, नागरिक जिम्मेदारी, भारतीय संविधान, अनुच्छेद 51 क, 42वां संविधान संशोधन, 86वां संविधान संशोधन, न्यायिक व्याख्या, मूल संरचना सिद्धांत।

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Published

15-05-2019

How to Cite

1.
सतीश तिवारी. मौलिक कर्तव्य और नागरिक जिम्मेदारी: भारतीय विधि में वर्तमान स्थिति (1947-2019). IJARMS [Internet]. 2019 May 15 [cited 2025 Jul. 4];2(2):266-74. Available from: https://journal.ijarms.org/index.php/ijarms/article/view/735

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