न्यायिक स्वतंत्रता बनाम न्यायिक उत्तरदायित्व: भारतीय संदर्भ में (1947-2020)
Abstract
भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसकी उत्तरदायित्वशीलता के बीच संतुलन बनाए रखना एक जटिल चुनौती रही है। 1947 से 2020 तक के कालखंड में, न्यायपालिका ने अपनी स्वतंत्रता को संरक्षित करने के लिए कई कदम उठाए, जैसे कि केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) में मूल संरचना सिद्धांत की स्थापना। वहीं, न्यायिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के प्रयासों में इन-हाउस तंत्र, न्यायिक आचरण संहिता, और न्यायिक मानक एवं उत्तरदायित्व विधेयक (2010) जैसे उपाय शामिल हैं। हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के आरोप लगते रहे हैं, विशेषकर न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रक्रिया में। यह शोध पत्र भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व के बीच के इस द्वंद्व का विश्लेषण करता है और संतुलन स्थापित करने के लिए संभावित उपायों पर विचार करता है।
कीवर्ड्स- न्यायिक स्वतंत्रता, न्यायिक उत्तरदायित्व, मूल संरचना सिद्धांत, कोलेजियम प्रणाली, न्यायिक सुधार, पारदर्शिता, भारत का संविधान, न्यायिक नियुक्तियाँ।
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